Book Title: Aadarsh Gyan
Author(s): Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 709
________________ आदर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड ६१४ सम्पत-पण हीव तो आ काम केवल ज्ञानसुन्दरजी ने हाथ में नथी रह्यो, न ? केम के रत्नविजयजी मेमर छापवानो आर्डर आपी दीg पछी ज्ञानसुन्दरजी अकला शुं करी सके। ___ सूरिजी-पण मेझरनामो लिखेलो तो ज्ञानसुन्दरजी नो छे न, ते धारे तो बंद करावी सके छे, अटले तमे फलोदी वाला ज्ञानसुन्दरजी ने उपर जबर्दस्त दबाव डालो तो काम बनी सके । सम्पत-पण ज्ञानसुन्दरजी रत्नविजयो ने गुरु माने छे अने ते ते ओनी अाज्ञा में पण चले छे, पछे ज्ञानसुन्दरजी नो शुं चाली सके आ प्रयत्न करवू तो अमने नकामु लागे छ । सूरिजी०-मेमरनामा ना पहिला फाम नी विषयानुक्रमण का अने आगमों ना प्रमाण जोतां ते साधुओंनी धूल कहाड़ी नाकशें अमने लागे छे के अाज सुधी साधुओं नो अवो दुश्मन कोई नथी जाग्यो । एक तरफ तो अंगरेजी अणेला नवयुवक साधुओं थी खिलाफ थाता जाय छे भने बीजी बाजु आ मेमरनामो तेश्रो नो हथियार बनी जाशे । भाई सम्पत अमने तो रात्रि में निंद्रा पण नथी श्रावती अने श्रेज पिचार श्राव्या करे छे के कोई न कोई उपाय थी मेझरनामो बंद थाय तो सारूँ। सम्पतः-साहिब संभलाय छे के उपाध्यायजी श्री यशाविजयजी महाराज पण एक लांबो चोड़ो हुन्डीनो स्तवन लिखि गया छ। सूरिजी-हाँ तेओ श्री हुन्डीनो स्तवन लिख्यो छे पण जेम मेझरनामा में खास साधुओं ने माटे विषय छुटा पाड़ि ने आक्रमण करेल छे तेम उपाध्यायजी ने नथी कयौँ तेत्रों तो समुच्चय लिखेलो छे तेने माटे अमोए ढूंढ़िया तेम यतियों नी अपेक्षा बतावी पोतानो बचाव करी सकिये छे पण मेझरनामा नी विषय जोवा थी अमाग

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