________________
आदर्श - ज्ञान- द्वितीय खण्ड
६१२
समय सरखेज मुकाम पर भी सूरिजी महाराज के भेजे हुए दो श्रावक आये और उन्होंने बहुत आग्रह किया, इसलिए मैंने भात्रनगर जैन पत्र वाले को लिख दिया है कि मेझर नामा बंद रखो, अर्थात् अब मत छापो, इत्यादि !
दोनो पत्र लिख कर लिफाफों पर नाम कर के संपतलाल को दे दिये कि तुम सूरिजी को पत्र बंचा कर बंद कर डाक में डाल देना ।
दोनों श्रावक संतुष्ट होकर वापिस अहमदाबाद जा कर दोनों पत्र सूरिजी को बचाकर बंद कर डाक में डाल दिए तब जाकर सूरिजी को आहार पानी करने की रुचि हुई और शान्ति से आराम किया, इतना ही क्यों पर सूरिजी ने अपनी विजय इस प्रकार समझो कि जैसी कि बादशाह अकबर ने राणा प्रताप के पत्र पर समझी थी ।
योगीराज के पास पत्र पहुँचते हो एक तार तो जैन पत्र वाले को दिया कि मेरनामा बंद मत करो छाप वर जैन में वितीर्ण करते रहना, दूसरा एक खुला कार्ड फलौदी वालों के पते पर अहमदाबाद मुनि श्री को लिखा कि यदि तुम्हारा भेकर - नामा शुद्ध भावना और पक्के प्रमाणों से लिखा है तो फिर किसी के कहने से डरपोक बन उसको रोक देने का क्या कारण है, यदि तुम किसी के कहने मात्र से घबरा जाते हो तो पहिले लिखा ही क्यों था, अब तो उसको सम्पूर्ण छपा देना ही अच्छा है 1 इसलिए आज मैंने भावनगर जैन पत्र वाले को तार दिला दिया है कि मेरनामा बंदमत करो और छापते जाओ ।