Book Title: Aadarsh Gyan
Author(s): Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 705
________________ आदर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड ६१० संपत--तेश्रो तो कह्यो हतो के 'थई गयो ते तो थई गया 'होवे श्रावी किताब माटे उपयोग राखीसु अने तेनो अर्थ तेओ एम कयों हतो के श्रा मेझरनामो तो छपी जाशे,अविषयनी बीजी किताब लिखवा माठे उपयोग राखेश । ___ सुरि०-अरे आ मारवाड़ी साधु बहूज हुशियार निकल्यो, अमरा पंजा मां थी छुटी गयो, अमने छेत्रीलीधा सम्पतलाल आ मुत्शही साधु अम्हारा हाथ थी चाल्यो गयो खैर हमणो ना हमणो जाओ , ज्ञानसुन्दरजी ने तेड़ी अमारे पास लाओ ___संपत०-साहिब ते ओ मारा एक ना कहवाथी श्रावशे नहीं। सूरि०–बे श्रावक बीजा लई जओ पण गमे तेम करी ज्ञानसुन्दर ने अमारे पास लइ आओ आ मेझर नामो गमे तेम बन्ध करावानो छै ,नहीं तो शासन ने मोटा में मोटो नुक्सान था शे । संपत०-साहिब ! आप रुपविजयजी ने दीक्षा देव मां बहुत उतवल करी तेनोज आ परिणाम छ । सूरि०-हाँ सम्पतलाल, तमारी कहवु सांचो छे अमे एक अमूल्य रत्न गमाबी कांच नो ककड़ो लेवा मां बहुत भूल करी छे पण तेतो बनवा वालो हतो ते बनी गयो होवे तो गमे तेम करी ज्ञानसुन्दर ने यहीं लाओ अने मेझरनामो बंद करावो आ मोटा मां मोटी शासन नी सेवा छ । सम्पत ! हुँ साचु कहूँ छु के मने अटली बड़ी चिंता थइ छ के पूरी गोचरी पाणी नथी करी सक्यो । सम्पत-घर पर जाकर रोटी भी नहीं खा सका और शहर में जाकर सेलावास वालों को साथ लेकर एक स्पेशल मोटर में बैठ सरखेज गये, मुनिश्री के पास जाकर बन्दन की और कहा कि आपको सूरिजी महाराज ने जरूरी काम के लिए याद

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