Book Title: Aadarsh Gyan
Author(s): Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

Previous | Next

Page 704
________________ ६०९ मेझरनामा और सम्पतलाल भूमि का गौरव है और होना ही चाहिये, क्या तुमको मारवाड़ का गौरव नहीं है ? संपत० - नहीं क्यों ? अवश्य है । मुनि० - सम्पतलाल ! मेरा कहना केवल भूमि गौरव का नहीं है, पर मेरा कहना सत्य के लिए है, एवं मैंने मेफरनामा को ऐसे अकाट्य प्रमाणों से दृढ़ बनाया है कि किसी को बोलने के लिए जगह तक भी नहीं रखी है । संपत० : - इस मेफरनामा छपवाने में आपके अतिरिक्त अन्य कितने साधुओं की सम्मति है । मुनि० : - यों तो सात आठ साधुओं की सम्मति है, पर मालो कि किसी को भी सम्मिति न हो तो क्या सत्य का कोई खून कर सकता हैं ? संपत ० :- अब क्या आपका इरादा मेफरनामा को छपवा देने का ही है ? मुनि० : - इस समय तो मैंने निश्चय कर ही रखा है । संपत ० :- वन्दन कर वापिस लौट गया और मुनिश्री सरखेज पहुँचे, सम्पतलाल सीधा ही वाड़ी में सूरिजी के पास गया, आचार्य श्री को बन्दन किया । सूरिजी ने पूछा कि, सम्पतलाल ज्ञानसुन्दरजी ने क्या सुधी पहोंचावी आया छो, अने मेमरनामा नी विषय मां कांई वात थई छे ? सम्पतलाल सूरिजी का भी पक्का भक्त था, अतः उसने कहा साहिबजी ! मेरनामो तो छपी जाखे । सूरि० सम्पतलाल ! तमारे सामने ज्ञानसुन्दरजी कही गया छे के जे थयो ते थइ गयो इत्यादि ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734