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सुरत में महावीर जयन्ति
व्याख्यान हुआ, बाद मुनि विद्याविजयजी का बाद सूरिजी ने कहा, मुनिजी आप भी कुछ बोलोगे ? मुनिजी ने कहा कि आपकी आज्ञा होनी चाहिये ? सूरिजी ने कहा, समय तो थोड़ा ही है, पर १५ मिनिट का समय आपको दिया जाता है । हमारे चरित्रनायकजी ने सूरिजी महाराज को नमस्कार करके
'महावीर का मुख्य सिद्धान्त और गणधर रचित प्रथम अंग, ' आत्मवाद 'लोक (सृष्टि) वाद, कर्म-वाद' और क्रिया-वाद इन चारों का इतना सुन्दर वर्णन किया कि आपने अपने 'ज्ञान सुंदर' नाम को सार्थक बना दिया । उपस्थित श्रोता गण तो क्या पर सूरिजी माहाराज भी आश्चर्यान्वित हो गये । इस पर सूरिजी के मन मन्दिर में यह लग्न लग गई कि ज्यों त्यों कर मुनिजी को अपने साथ में ले लेना चाहिये, अस्तु ।
अन्त में सूरिजी महाराज ने उपसंहार करते हुए महावीर के जीवन की विशेषताएं बड़ी खूबी से बतलाई जिसको सुनकर सब लोग मंत्र मुग्ध बन गए और जयध्वनि के साथ सभा विसर्जित हुई
एक दिन सूरिजी ने अपने माननीय शिष्य योगीराज रत्न विजयजी से कहा कि तुम हमारे साथ बम्बई चलो ।
योगी० - अमारे बम्बाई थी शुं लेवो छे ? सूरिजी -- बम्बाई सारो क्षेत्र छे ।
योगी : - अमारी प्रकृति आप जाणो छो, पेटला बधा साधुनों नी धमाल मने गमती नथी ।
सुरिजी० - खैर, ज्ञानसुन्दर को तो हमारे साथ भेज दो । योगी० - पूछी लेजो ज्ञानसुन्दर ने, पण मारा खयात थी ते आपनी साथे चाल से नहीं ।