Book Title: Aadarsh Gyan
Author(s): Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 667
________________ आदर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड ५७४ सूरजी०-शुं कारण छे ? योगी०-श्रा पण एकांत मां रह पसंद करे छ। ' सूरिजी०-आवा विद्वान् साधु एकान्त मां रही शुं लाभ उठायी सकशे। योगी-तेओने जे लाभ एकान्त मां मले ते धमाल मां मलतो नथी। सूरिजी-शुंतमें ज्ञानसुन्दर ने उपकेश गच्छमां की दीधा ? योगी-जी हाँ। सूरिजी-आनो शु कारण छे ? योगी-कारण एज के एकान्त मां रहे। सूरिजी-शुतपा गच्छ मां एकान्त नथी रही सकता ? ओछामां श्रोछ तेने तमारो शिष्य तो बनाव्या होत । योगी-हुँ पोते पण शिष्यज छं, श्रेटले बीजाने केवी रीते शिष्य बनावें । सूरजी-पण उपकेशगच्छ मां नथी कोई साधु, नथी कोई साध्वी, पछे एक साधु बनावा मां लाभ शु? योगी-आ जेष्ठ गच्छ छे, आ गच्छनो जैन समाज पर घणु उपकार छे, पण लोगो आ गच्छ ने बिल्कुल भूली गया छे, अटले कृतघ्नी बनेला जीवों ने ा कृतज्ञ बनावशे । सूरिजी-जे तमे करो ते सारुंज छ।

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