Book Title: Aadarsh Gyan
Author(s): Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 650
________________ १५९ खरतर गच्छीय साधुनों का मिलाप हकीकत आपने कहीश। बस, पास में ही कोटावालों की धर्मशाला थी वहां ऊपर के एक हाल में खरतर गच्छ के क्षमासागरजी व हरिसागरजी वगैरह साधु ठहरे थे, उनके हॉल के पास में ही एक दूसरा अच्छा हॉल था वह मुनिश्री के लिये खोल दिया गया और मुनीम ने साथ चल कर श्राहार पानी की सब योगवाई करवा दो। ___ गोचरी पानी करने के बाद खरतर गच्छ के साधु आये जिस. में एक क्षमासागरजी नाम का अच्छा साधु था, तथा बल्लभसागर. जी जो पढ़ा लिखा तो मामूली था पर अपने आचार व्यवहार में अच्छा साघु था। इन सब साधुओं में बड़े हरिसागरजी थे थोड़ी देर बात चीत को तथा कहा मुनिजी आज तो आपने व्याख्यान दे कर मारवाड़ियों की ठीक सिफारिश की । यहां का ढंग ही ऐसा है हम लोगों ने भी बीकानेर की बाई के पास से इस मुनीम की मुट्ठो गर्म कराई तब यह एक कमरा मिला है, पर आपने तो आते ही ऐसे हाथ बताये कि खास मुनीम ने आकर आपके लिये कमरा खोल दिया, यदि कोई अन्य अकेला साधु आया होता तो यहां कोई पूछता तक भी नहीं । खैर अच्छा हुआ, आपका समागम होगया जिसकी कि बहुत दिनों से अभिलाषा थी, कल हमारे साथ पहाड़ पर चलना, हम आपको सब यात्रा करवा देंगे। मुनिश्री ने कहा, बहुत अच्छी बात है। पालीताणा में १॥ घण्टे का व्याख्यान देने से मुनिश्री का छापा जम गया । गर्म पानी करने वाले को भी साधु-साध्वी कुछ न कुछ दिलावें तब ही सुख से पानी मिल सके; परन्तु जब मुनि श्री पानी के लिये गये, आप हाथ में डंडा भी खूब जाड़ा-मोटा रखते थे, पानी वाले ने पूछा, शुं मारवाड़ी साधु तमेज छो ? मुनि

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