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आदर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड
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मुनिश्री ने क्षमासागरजी से पूछा कि दिन बहुत कम रहा है हरिसागरजी अभी तक आये नहीं हैं फिर वे अहार-पानी कब करेंगे।
क्षमासागरजी ने कहा कि मुनिजी मैं आपको क्या क्या कहूँ। आज कल का साधुपना केवल नाममात्र का ही है। जिसमें भी दो दो चार चार वर्षों के लड़कों को दुकाल में मूल्य स्वरीद कर साधु बना देते हैं वे विचारे साधुधर्म को कैसे पाल सकते हैं। इतना ही नहों पर वे साधु पद को कलंकित करने में भी नहीं चूकते हैं।
मुनिश्री-क्या हरिसागरजी भी इस कोटि के साधु हैं ? '
क्षमा०-हाँ इनको भी बच्चपने में मूल्य खरीद कर साधु बनाया है।
मुनिश्री-हरिसागरजी जाति के कौन हैं । क्षमा०-जाट हैं !
मुनिश्री-चुप होकर अपने मन में विचार करने लगे कि अहा-हा वीरथारा शासन जिस दीक्षा को आत्म-कल्याण का कारण बतलाया था वही दीक्षा आज इन जाटड़ों के सुखभोग और "उदरपूर्णा का कारण बना है भला घरांण की विधवाओं और साध्वियों ऐसे जाटड़ों के हाथ लग गई और द्रव्य की खुल्ले हाथों छूट फिर तो कहना ही क्या वे न करे उतना ही थोड़ा है इत्यादि अफसोस करते हुए पूछा की क्या हरिसागर अहार-पानी यहाँ आ कर करेंगे।