Book Title: Aadarsh Gyan
Author(s): Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 662
________________ ५६९ सुरिमी और योगीरान पधारे और अर्ज की कि मैं यहाँ ठहरा हुआ था, फिर आप यहाँ भाकर अलग ठहरे, इसका क्या कारण है ? क्या आपको प्राचार्यश्री की ऐसी श्राज्ञा है ? इन्द्रविजयजी ने कहा नहीं मुझे यह मालूम नहीं थी कि आप बड़ेचोटे ठहरे हुए हैं अतः मैं यहाँ ठहर गया। योगी०-खैर, सूरिजी महागज कब पधारेंगे ? ३० वि०-कल कतार गांव पधारेंगे। योगीराज दूसरे दिन कतारगांव गये, मुनिश्री ने भी साथ चलने को कहा, पर योगीराज ने कहा कि तुम यहीं ठहरो। योगीराज कतार गांव गये, इधर से सरिजी भी पधार गये। सूरिजी के साधु गोचरी-पानी लाये और सूरिजी ने योगीराज को कहा, आश्रो रत्नविजयजी गोचरी करो। - योगी०-मैं आपके साथ गौचरी नहीं कर सकता हूँ ? • सूरिजी०-क्यों क्या कारण है ? योगी-मैं ज्ञानसुन्दरजी के साथ गोचरी करता हूँ, कदाचित आपके साधु इसके लिए ऐतराज करें; शायद इन्द्रविजयजी आदि इसी कारण गोपीपुरा में अलग ठहरे हुए हैं । सूरिजी-हाँ, तुमको व्यवहार तो रखना ही चाहिये । 'ज्ञान सुन्दरजी' की अभी बड़ी दीक्षा नहीं हुई है, अतः तुम आहार पानी उसके शामिल कैसे करते हो ? योगी०-ज्ञानसुन्दरजी को मैंने बड़ी दीक्षा दे दी है, अतः उनके साथ रहने में एवं आहार पानी करने में मुझे कोई दोष मालूम नहीं होता है। :: सूरिजी-ज्ञानसुन्दरजी ने योग किसकेपास किया ?

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