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आदर्श - ज्ञान
पानी बन्द है, वह उनका लावें और खावें । किन्तु गयंवरचन्दजी ने उस दिन आहार पानी ही नहीं किया और चौबीहार उपवास कर दिया ।
रात्रि में सब साधुओं के सो जाने के बाद पूज्यजी महाराज गयवरचन्दजी के पास आये और आपको जगा कर कहने लगे । पूज्यजी क्यों गयवरचन्दजी, आज मैंने तुमको कुछ कह दिया है, जिससे तुम्हारी आत्मा दुःखी है।
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गयवर - मुझे दुःख तो इस बात का है कि मैं सत्य कहने पर भी मारा जाता हूँ ।
पूज्यजी - किन्तु तुमने सबके सामने क्यों कहा?
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गयवर० - पूज्यजी महाराज, क्या करूँ, खरी बात कह देने की एक मेरी आदत ही पड़ गई है । सत्य बात कहने में मुझे आगे पीछे का भान नहीं रहता है ।
पूज्यजी - इसी कारण तो तुम दुःख पा रहे हो ।
गयवर०- - फिर मैं क्या करूँ ? सत्य को दबा कर सत्य को स्वीकार कर लूँ ।
पूज्य जो- -तब ही तो मैं कहता हूँ कि तुम सब तरह से योग्य होने परभी, तुम्हारे में समयज्ञता नहीं है ।
गयवर० – समयज्ञता किसे कहते हैं ?
पूज्यजी - जैसा समय देखना वैसा काम करना, जैसे मैं करता हूँ ।
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गयवर० - इसमें माया कपट आदि का दोष तो नहीं लगता है? पूज्यजी - पांचमा आरा में बिल्कुल निर्दोष चारित्र नहीं है,