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कागज हुन्डी पैठ परपैठ मेझर.
१२००० पुस्तकें छपों, जिनका मारवाड़, मेवाड़, मोलवा, खानदेश इत्यादि प्रांतों में प्रचार हुआ, जहां कि ऐसी पुस्तकों की खास आवश्यकता थी । क्योंकि गुजराती एवं संस्कृत प्राकृत की पुस्तकें साधारण लिखे पढ़े मारवाड़ियों को उतनी उपयोगी नहीं थी जितबी कि मुनिश्री की बनाई हुई मारवाड़ी भाषा की पुस्तकें सिद्ध हुई थीं। यही कारण है कि श्रापकी बनाई हुई पुस्तकें सर्वत्र लोकप्रिय बन गई थीं। ___मुनिश्री ने जब से गुर्जर भूमि में पदार्पण किया तथा वहां के साधु साध्वियों का शिथिल आचार व्यवहार देखा एवं सुना तो आपको अतिशय दुख हुआ, पर पासत्थों के साम्राज्य में कौन किसको कहे और कौन सुने, यह केवल आपने ही नहीं किंतु म. होपाध्याय यशोविजयजी महाराज ने भी इसी विषय की पुकार की थी। अतः इस बाल लीला को लेखनी द्वारा लिख कर परमात्मा सीमधर तीर्थकर की सेवा में भेजना उचित समझ कर आपने 'कागज हुँडी, पैठ, परपैठ और मेझरनामा' लिखना प्रारंभ किया। लेकिन आपको दिन का समय तो बहुत कम मिलता था, अतः मेझरनामे का कार्य रात में ही किया करते थे । आप रात्रि में कविता बना कर पेंसिल से कागज पर लिख लेते थे जिसमें आपको रोशनी वगैरह की आवश्यकता नहीं रहतो, केवल इशारे मात्र से ही रात्रि में लेख लिख लिया करते थे ओर उसको दिन में सुधार कर ठीक कर लेते।