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भादर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड
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___ वहां से क्रमशः विहार करते हुए भड़ोंच नगर में आये और वहाँ मुनिसुव्रत तीर्थकर का प्राचीन मंदिर-मूर्ति के दर्शन कर परमानन्द को प्राप्त हुए । बाद आमोद-जम्बुसर होते हुए आपने श्रीकाबी तीर्थ की यात्रा की, वहां से खंभात जाना था; रास्ते में समुद्र पाता है अतः हमारे त्रिपुटो मुनिराज नाव में बैठे। सदैव नाव दिन रहते हुए खंभात पहुँच जाती थी, पर उस दिन प्रकृति का ऐसा प्रकोप हुआ कि वायु प्रतिकूल चलने से नांव चक्कर खागई और नांव में ही करीब गत्रि नौ बज गई । बिचारे नाविक ने बहुत प्रयत्न किया तब दस बजे नांवा पानी के किनारे पर पहुँची; पर वह किनारा खंभात का नही किंतु किसी अन्य छोटे ग्राम का था । बस, वहां लाकर पानी में नांव को खड़ी करदी, सब लोग उतरने लगे, इस हालत में मुनिमंडल भी उतरे । शीतकाल होने से एक ओर तो जाड़ा बहुत पड़ रहा था, दूसरी ओर से अंधेरी रात्रि थी, तदु परांत गहरे पानी से निकल कर जाना था; मानिकमुनिजी का पैर उचककर पानी में जा पड़ा, दूसरे मुनियों के भी वस्त्र वगैरह भीग गए थे, फिर भी हाथ में डंडा होने से उसके सहारे से पानी से पार हुए पर वे शीत के मारे खड़ खड़ धूजने लगे । बड़ी मुश्किल से गांव में पहुँचे, वहां पूछने पर मालुम हुआ कि यहां केवल एक घर श्रावक का है, पूछते २ वहाँ गये। श्रावक इतना भक्तिवान था कि उसने अपना मकान खोल दिया, गांव से माँग कर ८.१० कंबलें ला दी जिससे सब कपड़ा खोलकर तणी पर डाला और उन कंवलों से काम लिया । श्रावक ने गर्म तैल लाकर तीनों मुनियों की मालिश की तथा रात्रि भर वहीं ठहरे। सुबह ही श्रावक नेबहुत आग्रह किया अतः गोचरी पानी वहीं किया और दूसरे दिन खं.