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भादर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड
५५२ अमे सांभलता हता तेम सार ज्ञानी नकल्या । लो हवे काले श्राप व्याख्यान वांचजो, बधा श्रावक अने श्राविकाए व्याख्यान सांभलवा
आवशे, बाद मुनिश्री ने वन्दन कर कुंवरजी भाई ऊपर साधुओं नी पासे गया और कहवा लाग्या के महागन ढूंढिया मां सारा सारा साधु होय छे । श्रा ज्ञानसुंदरजी साधु पण ढूंढिया माँ थी आवेला छे, अने शास्त्रों सारो अभ्यास किधे लुं छे, तेत्रो आराधना नो स्वरूप हमणा अमने सारी रीते समझाव्यो छे, आवती काले तेओ ने व्याख्यान माटे अमोए बिनती पण कीधी छ।
साधु०-पण एनो व्याख्यान थशे क्यों ? कुँवर०-अहीं ज थवानो। साधु०-पण गुरु महाराज ना पाटा पर तो न बेसाय । कुँवर०-ए मां हुँ वाँधो आवे छे ?
साधु०-तमे समझदार थइ ने, एम केम बोलो छो, | गुरु महाराज ना पाटा पर बीजा साधु थी बेसाय खरूँ ?
कुँवर०-पछि श्रापणा साधु तेज पाटा पर बेसी व्याख्य न केम वाँचे छ ?
साधु-पण आ साधु तो आपणा सिंघाड़ाना नथी ना ? कुँवर०-सिंघाड़ा ना नथी एटले शुं थयो?गुणी तो छे ना?
साधुः-शाना गुणी, इँढियां माथी श्रावेला नथी, लीधी कोई ने पासे बड। दीक्षा, नथी किधा योग, एवा साधु गुरु महा राज ने पाटे बेसी व्याख्यान केम वांची सके ?
कुँवर० साहेब ढूढिया माँ थी ओव्या आथी थयो ?
गुरु महाराज पण पहिला दूं ढयाज हता, दढिया ने पाटे ढूंढिया बेसे पा मां हूँ तो कोई नुकसान जोतो नथी ।