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भादर्श - ज्ञान-द्वितीय खण्ड
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ने कहा कि कल तो बंडा में व्याख्यान होगा, यदि परसों ठहरेंगे at are यहाँ एक व्याख्यान बांच देवेंगे ।
शाम के प्रतिक्रमण के पश्चात् फिर कुँवरजी भाई, जसराज भाई वगैरह बहुत से श्रावक आये और धर्म चर्चा तथा कई प्रश्नोतर हुए, उस समय ऊपर ठहरे हुए साधु भी कई पास में बैठ कर प्रश्नोत्तर सुन रहे थे जो उनके लिए अपूर्व ही थे। मुनि श्री का ज्ञान और समझाने की शैली देख सब लोग प्रसन्न चित्त हो गये थे र चतुर्मास के लिए आग्रह पूर्वक विनती करने लगे कि आप सिद्धाचल की यात्रा कर थोड़े दिन काठियावाड़ में विहार कर च तुर्मास भावनगर में करें, आपको बहुत लाभ होगा, कारण यहाँ कई श्रावक सूत्र सुनने के अभिलाषी हैं और ज्ञानाभ्यास करने वाले भी हैं।
मुनिश्री ने कहा, क्षेत्र स्पर्शना, किन्तु हमको तो लौट कर गुरु महाराज की सेवा में जाना है ।
एक श्रावक बोल्यो के साहेब आपना गुरु को नाम शुं छे ? मुनि - परमयोगिराज मुनि श्री रत्नविजयजी महाराज | श्रावक - आ महाराज कोना सिंघाड़ ना छे । मुनि - आचार्य विजयधर्मसूरिजी महाराज ना शिष्य छे ? श्रावक —त्यारे तो आप पण वृद्धिचन्दजी महाराज ना सिंघाड़ा ना ज छो न ?
मुनि - सिंघाड़ा अमे जाणता नथी अमे छीए प्रभु महावीर "मा साधु |
श्रावक - ते तो खरूं पण तमे वृद्धिचन्दजी महाराज ना सिं