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भावनगर में व्याख्यान साधु-अगर तमने व्याख्यान वंचाववा नो ज होय तो छोटा पाटा पर बेसाड़ी ने वंचाव जो, गुरु महाराजना पाटा ऊपर न बेसे।
कुँवरजी-ना साहेब ! एक विद्वान साधु नो पा प्रमाणे अपमान करवो अमने तो उचित नथी लागतो। _____ साधु-अरे ा साधु तो बहु बोलाक अने चालाक छे, अमने पण कही दीधुं के आ मारवाड़ी बांडा तो मारवाड़ो नो ज होय छे, नकली जाओ तमे आ मकान थी तो एवा साधु ने शु गुरु महाराज ना पाट बेसवा ने अपाय खरूं ?
कुँवर-पण, जेम ते मकान ऊपर हक बताव्यो तेम पाटा पर इक बतावी पाटे बेसी जा से तो पाछे श्रापणे शुं करीशुं ? ___मुनि-शुं मगदूर छे के ते पाटे बेसो जाय पण तमारी दानतज एक नकामा साधु ने गुरु ना पाट पर बेसाड़वानी हाय तो पछी अमारे शुं करQ जोइये ।
कुंवरजी-साहेब ! मांनो के श्रापणे ना पाड़ता छतां ते पाट पर बेसे तो पछि आपणे शुं रह्या ते करतो तो पाट श्राप वो ज सारूंछे न।
साधु-जेम तमने गमे तेम करो। कुंवरजी-जोइ सुं जसराजभाई ने पुश्री ले सुं। - इधर-मुनिवरों को शाम को गौचरी तो करनी ही नहीं थी, वे श्रावकों को साथ लेकर शहर में गये तो पहिले प्रात्मानन्द सभा, बाद यशोविजय प्रन्थमाला, जैनधर्म प्रसारक सभा और जैन-पत्र के आफिस में जा कर साधारण तौर पर निरीक्षण किया । श्रामानन्द सभाका हाल अच्छा था उन्होंने व्याख्यान के लिए प्रार्थना की थी कि आपका एक व्याख्यान यहाँ होना चाहिये।