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आदर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड
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गोचरी के घर बताये, वहां से गोचरी लाकर आहार पानी करके आराम किया ही था कि इतने में तो कुंवरजी भाई वैगरहः आ गये। कुँवरजी भाई- - अमोए सांभलता हता के तमने शास्त्रों नो सारो बांध छे ? तो हवे कांई लाभ आपो ?
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मुनि० - साधुओं ने यथा क्षयोपसन शास्त्रों नो अभ्यास कर कुंज जोईये, 'नाणेण मुणि होई' श्रा उत्तरा ध्यान तो पाठ छे ।
कुँवर० - साहिब जीव ने आराधना केवी रीते आवी सके ? मुनि० - जीव नरकनिगोदना दुःखो ना डर थी अनंतीवार धर्म क्रिया कधी पण आत्म भाव थी तथी करी एटले संसार छूटतो नथी । आराधना, जिन वचनों नी आराधना करवा थी आवी सके छे, अने ते आराधन क्षयोपसम ने लिधे जघन्य मध्यम अने उत्कृष्ट एवं तीन प्रकार नी होय छे ।
कुँवर० - साहेब ने जरा विस्तार थी कहीने संभलाओ तेथी आ बेठे ला बधा श्रावक सारी रीते समझी सके ।
मुनि० - आराधना तीन प्रकार नी होय छे; ज्ञान, दर्शन, चा रित्र तेमां ज्ञान, दर्शन मूल वस्तु छे, अने तेना रक्षण माटे चारित्र बताव्यो छे, जेम के खेत्र मां धान हाय छे तेना रक्षण माटे कांटां नी बाड़ करे छे । द्रव्य चारित्र ने अभावे पण ज्ञान दर्शन थी मोक्षथइ सके छे, पण ज्ञान, दर्शन बिना केवल द्रव्य चारित्र थी मोक्ष नथी थाती, हाँ । ज्ञान दर्शन नो साथे चारित्रनी पण जरूरत छे, कारण आ व्यवहार चारित्र पण मोक्ष साधवा मां सहायक बने छे 1
कुँवरजी० - केम साहेब सिद्धों मां पण चारित्र होय छे न ? मुनि० - जो सामयिकादि पंच चारित्र छे तेने श्रापणे चारित्र कहिये छिए, ते चारित्र सिद्धों मां नथी, अने हुँ तेज चारित्र नी वात