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मूर्तिपूजा की चर्चा
मुनिजी-तो फिर मूत्तिमानने से यदि आपकी श्रद्धा का भंग नहीं होता है, तो हमारी श्रद्धा का भंग किस तरह से हो जावेगा। ___सेठजी-खैर अभी तो आप पधारिये रसोई घर में और वहाँ जाकर गोचरी ले लीजिये। ____ मुनिजी-रसोईघर में जाकर गोचरी वेहरी और सेठजी अपना पीछा छुड़ा कर दुकान पर चले गये। ___ सेठजी को आशा थी कि मैं मेरी उत्पात बुद्धि और युक्तिवाद से जैसे शोभालालजी को दबा दिया, उसी भाँति गयवरचंदजी को भी दबा दूंगा; किन्तु अब यह सब बात सेठजी के मन की मन में ही रह गई, तद्यपि सेठजी हतोत्साही नहीं हुए। उस दिन तो सेठजी दोपहर में नहीं आये, क्योंकि आप कई प्रकार की युक्तियाँ तैयार करने में व्यस्त थे। __ दूसरे दिन फिर एक बजे के करीब सेठजी और आपके साथी मुनि श्री के पास आये और इधर उधर की बातों के पश्चात सेठजी बोले महाराज ! आपने आचाराँग सूत्र पढ़ा है। मुनिजी-हाँ सम्पूर्ण पढ़ा है।
सेठजी-पहिले अध्यायन के पहिले उदेश में पाठ आया है कि धर्म के लिए छः काया की हिंसा करे, तो बोध बीज का नाश होता है।
मुनिजी-नहीं सेठजी; बहाँ तो छः कारण बतलाये हैं। देखिये सूत्र यह सूत्र मेरे पास मौजूद हैं।
तत्थ खलु भगवया परिन्नाए पवेदिता इमस्स चेव