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भादर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड
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भी बहिनें व्याख्यान में पाया करती थीं, आपको कपड़ा, कांबली वगैरहः के लिये आमन्त्रण कर मकान पर ले गये, उनका भंडार देख कर आप चकित हो गये, वह कमरा केवल साधुओं के उपकरणों से ही सजा हुआ था आपको इतनी जरूरत तो नहीं थी तथापि सेठ साहिब का मन रखने को थोड़ा बहुत लाभ देकर आगये। ___ मुनिश्री अकेले थे, मारवाड़ियों के घर बहुत थे, तथापि एक दिन जवेरी वाड़ा में गुजरातियों के वहाँ गोचरी गये, एक घर में प्रवेश कर धर्म लाभ दिया तो बहिन बोली:--
बहिन-तमें किया गच्छ ना छो अने क्यां डतरिया छ ?
मुनि-तमें किया गच्छबालो ने रोटली आपो छो, तथा कियां उतरे तेने भात वेहरावो छो ?
बहिन-ना साहिब, हुँ तो अमथा पूछीयो लो वेहरो।
मुनि-ना बहिन, यदि तमारे नियम होय के अमे अमुक गच्छ वाला तया अमुक ठिकाने उतरेला ने ज रोटली आपिये छे तो अमे तमारो व्रत तोड़वा माटे नथी आव्या; कहो दो तमे क्या गच्छ वाला ने रोटली आपो छो, जो तमारा नियम में अमारा गच्छ नो नाम हशे तो रोटली लइस नहीं तो त मारो व्रत भंग करावीश नहीं ।
बहिन-अरे साहिब अमारी भूल थई छे तमे वेहरो रोटली। ___मुनि-बहिन अमे श्रावक ने तारवा निकल्या छ न कि कोई ना ब्रत भंगावा, एटले तमे कही दो, तमे क्या गच्छवाला ने रोटली आपो छो?
इतने में तो उस बहिन का पति आ गया जो हमेशा मुनिश्री का व्याख्यान सुनता था, उसने अन्दर से मिष्ठान्न का डब्बा लेकर आमन्त्रणा की, साहिब बेहरे । मुनिश्री ने श्राविकानी की