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हेमचन्द भाई का प्रश्न
सुरत में एक हेमचंद भाई नामक अच्छा जानकार श्रावक था, और वह गोपीपुरा में रहता था पर किसी उपासरा के बंधन में नहीं था । तात्विक एवं द्रव्यानुयोग पर व्याख्यान होता तो वह कहीं भी जा कर व्याख्यान सुनने में आनंद मानता था, जीवचार, दंडक, संग्रहनी, क्षेत्र-समास और कर्म-प्रन्थ का उसने अच्छा अभ्यास किया था। उसने सुना कि बड़ाचोटे मारवाड़ी साधु श्री भगवती सूत्र अच्छी तरह से बांचते हैं अतः वह भी व्याख्यान में आया करता था, पर उसमें एक खूबी यह थी कि चाहे कोई भी साधु क्यों न हो, व्याख्यान में तर्क विवर्क किया करता था और इसी से साधारण साधु उनसे डरते रहते थे। ____ मुनिश्री के व्याख्यान में भी १-२ बार तर्क वितर्क का करना तो बुरा नहीं था पर भाई को अपने जानपने का गर्व था खैर हेमचंद की तक का तो आपने समाधान कर दिया, पर इस प्रकार तक करने से अन्य लोगों को व्याख्यान की अंतराय पड़ने से अरुचि कारक मालूम होता था और बहिनें तो इस पर नाराज ही रहती थीं । खैर इसका इलाज करने के लिए एक दिन मुनिश्री ने पूछाः
मुनिश्री हेमचन्द भाई स्पर्श केटला ? हेमचन्द-स्पर्श आठ। मुनि:-काई विचारी ने कहो ? हेम०-ए मां शानो विचार, स्पर्श तो आठज होय छे । मुनि०-फरी थी विचार करो ? हेम०-श्राप शुं कहो छो ? मुनि०-विचार करीने कहवानो हुँ कहुँ छ। हेम-आमां शुं विचार करवानु छ, स्पर्श तो आठज होय