________________
५२१
प्रश्न का खुलासा
राज ने पासे, अने पूछवा लाग्या कि साहिब स्पर्श केटला ? गुरु महाराज व्याख्यान नो बधो मामलो पासना कमरा में बैठा सुना लीधो हतो एटले तेश्रो श्री मुनिजी ने बोलावी कहवा लाग्या कि आ हेमचंद्र भाई ठीक कहे छे के स्पर्श आठ होय छे; तमे शु करवा ना पाड़ो छो अने तेनो कारण शु छे ?
मुनि० - साहिबजी ! कोई साधारण अम्यासी यदि आठ स्पर्श कही दे तो हैं स्वीकार करवाने तैयार हूँ, पर हेमचंद्र भाई जेवा विद्वान आठ स्पर्श कहे तेने हुँ स्वीकार करतो नथी; अतः हेमचंद्र भाई हजु पण विचारी ने उत्तर आपे तो सारू । योगीराज : - लो तमे पोता नो निर्णय बतावी आपो ।
--
मुनि - हाँ हेमचन्द्र भाई कहे तो हूँ कही सकूँ हूँ । हेम०-हुँ हुँ कहूँ साहिब, अमारी मानता तो आठ स्पर्श मानवानी हती ते आपने कही दोघु ।
मुनि० – ठीक, तमे घेरे जाइ विचार करजो, नहीं तो पछे आवती काले व्याख्यान में हूँ कहीश ।
हेम ० - वन्दन करीने चाल्या गया, पण ते खरोखर विचार में पड़ी गया; अने कर्म-ग्रंथ लइ ने जोवा लाग्या पर स्पर्श तो
आठ ना आठज रह्या ।
तेजा
बीजे दिवसे व्याख्यान थयो लोगो बहु जल्दी आव्या, ता हता के हेमचंद्र भाई ना प्रश्नोत्तर में कौनो कहवो साँचो छे । मुँह पत्ती का प्रतिलेखन के पश्चात फिर वही चर्चा शुरू हुई, श्राखिर मुनिश्री ने समझाया कि मूल स्पर्श तो शीत, उष्ण, रूक्ष और स्निग्ध एवं चार ही हैं, इन चारों के संयोग से ४ स्पर्श पैदा हुए हैं, पर वे असली स्पर्श नहीं हैं; हाँ बालजीवों को समझाने के