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आदर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड
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आपको समय मिले उत्तर लिख कर मुझे दे दीजिए ताकि मैं मुनिश्री की सेवा में भेज दूंगा। ___सागरजी ने कहा कि जब ये हँढ़ियों से निकले थे उस समय भी एक पत्र में इनके प्रश्न आये थे। मैंने उत्तर नहीं दिया; अतः इन प्रश्नों के भी उत्तर लिखने की आवश्यक्ता नहीं, यदि उनको प्रश्नों का उत्तर लेना है तो रूबरू आ कर ले जावें । .
भंडारीजी -आप केवल मुनिश्री के प्रश्नों का उत्तर ही नहीं लिखते हो, या सब के लिए ऐसा नियम है ? क्यों कि आप समाचार-पत्रों में तो खण्डन मण्डन के लेख दिया करते हो, फिर इन प्रश्नों का उत्तर क्यों नहीं लिखते हो ?
सागर जी-इस बात की तुम को क्या पंचायत करनी है ?
भंडारीजी-पंचायत नहीं करनी है, पर आपने अपने व्याख्यान में कहा था कि 'यह मारवाड़ी साधु विचारो शुजाणे छे; अब तो आप जान गये ना कि मारवाड़ीयों के पूछे हुए प्रश्नों का उत्तर देने के लिए गुजरातियों को मौन या क्रोध की शरण लेनी पड़ती है ?
सागर-जाओ २ देखलिया तुम्हारे मारवाड़ी साधु को जिस को कि पूर्ण शुद्ध भाषा भी लिखना नहीं आता है, और प्रश्न पूछने को तैयार हुए हैं, जाओ तुम्हारे मुनी को कह दो कि पहिले थोड़ा शुद्ध लिखने का अभ्यास करें।
भंडारीजी-महाराज ! यदि लिखने में कहीं गलती भी हो तो इससे प्रश्नों का उत्तर मारा तो नहीं जाना चाहिये । मैंने आपके ही व्याख्यान में सुना था, एवं आपने ही फरमाया था कि आत्मीयज्ञान, केवल भाषा के आधीन नहीं है, तो फिर भाषा की