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कतार ग्राम की यात्रा
वानी की तैयारी में लग गये, उनके हृदय में इतना उत्साह था कि अपने कुटुम्बियों और संबंधियों को तार देकर बम्बई से बुलाये और आने वाले झवेरी, सुरतीलाला, लाखों रुपयों का आभूषण अगवानी के जूलूस के लिये ले आये । गोपीपुरा एवं बड़ाचोंटा के श्रावक समुदाय एकत्रित हो सम्मेला का चिट्ठा किया था,उस में २५ सम्मेला* वालों के नाम मंडवाये । ___पन्यासजी, योगीराज और सर्व साधु जघड़िया से विहार कर लीबेट, मांगरोल, कठोर होकर जब कतार ग्राम जो सूरत से तीन मील होता है, वहां आये तो देखा कि सूरत के सैंकड़ों श्रावक पहिले ही उपस्थित हो गये थे; उस दिन तो वहां की यात्रा की वह दिन था बैसाख शुक्ला १४ का शुभदिन । ___भंडारीजी --शत्रुञ्जयतीर्थ पर ओलियाँ एवं सेवा भक्ति कर के वहाँ र कतारग्राम आ कर सब मुनियों के दर्शन किया वहाँ कई मारवाड़ के लोग जिन्हों की दुकानें बंबई में थीं वे लोग भी दर्शनार्थ कत्तारग्राम आये हुए थे मुनिश्री ने उन लोगों को कहा कि भंडारोजी आपके स्वाधर्मी भाई हैं यदि आपका बंबई आना बन जाय तो स्वागत करने का ध्यान रखना । बस फिरतो था ही क्या चारों
*सम्मेला का अर्थ यह है कि जिस में एक पुष्पादि एवं जरि के वस्त्रों से अलंकृत हुई मोटर जिसमें पांच २ दश २ लाख के आभूषण पटिने हुए सकुटुम्ब बैठ जाना और उसके आगे सोलह आदमियों का एक अंगरेज़ो बाजा और श्रृंगार किया हुआ कोतल हो उसको सम्मेला कहा जाता है और यह सब ख़र्चा एक धणी की ओर से होता है, इस प्रकार से २५ सम्मेला होना निश्चय हुभा था, जिसमें २५ सुसज्जित मोटरे, २५ कोतल, और ४०० बैंड बाजा में बजंत्री होते हैं ।