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आदर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड
५१० का सम्बंध है और न मेरा हो, फिर यह पेटी यहाँ क्यों भेजी है ? इधर पन्यासजी की मृत्यु से नगर में यह अफवाह फैल गई थी कि पन्यासजी को इस कृपाचन्द्र यति ने ही मारा है इत्यादि । मुनीम ने दीर्घ दृष्टि से विचार कर दो मातबर आदमियों को बुलाकर उनके सामने उस पेटी को खोली तो उसमें क्या देखते हैं:-काला कपड़ा, काला डोरा; नींबू के अंदर चुभी हुई सुइयाँ, उड़दों के बाकुला वगैरह थे। इनको देखते ही उन लोगों ने निश्चय कर लिया कि इन यतियों ने ही पन्यांसजी के प्राण लिए हैं, इसमें किसी प्रकार का सन्देह नहीं है। ___ मुनीम ने सब से पहले एक तार तो नगरसेठ को बम्बई दिया कि तुम बंबई में ठहरो और सुस्त मत आवो, जब तक कि हमारा पत्र आपको न मिल जावे । मुनीम को वहम हो गया था कि इन हत्यारों ने यह कर्म नगरसेठ के लिए ही तो न किया है, अतः नगर सेठ का यहाँ न आना ही अच्छा है ।
फिर तो यह बात सब नगर में फैल गई । मजदूर लोग भी उपाश्रय की ओर मुँह कर कर कहने लगे कि इस हत्यारा यति ने एक साधु को मार डाला; गृहस्थ लोग तो काली तृपणी देख कर चौंक उठते थे, खरतरों के साधुओं को घर में प्राने तक नहीं देते थे। आखिर किसी एक गृहस्थ को कृपाचन्द्र ने एक डोरा यंत्र कर दिया था। और उसने एक चौका खोल दिया, उस चौके से कृपाचन्द्र के साधु दोनों समय अन्न जल ला कर वे साधु घावी लोग अपना निर्वाह करने लगे। बाद में उन्होंने पात्रा तृपणिये लाल रंग की रंगली, और वे गृहस्थों के वहां भी गौचरी जाने लगे, परन्तु लोग जान गये थे अतः उन्हें घरों में नहीं आने देते थे।