Book Title: Aadarsh Gyan
Author(s): Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 597
________________ आदर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड ५०८ क्यों, पर हालत और भी अधिक खराब होती गई । एक २ घंटे के अन्तर में डाक्टर निगाह करते, तो भी उनके समझ में नहीं श्राती कि यह क्या बीमारी है । सुरत में कृपाचंद्रजी और उनके साधुओं के अतिरिक्त शायद ही ऐसा कोई जानकार आदमी बचाहो कि जिसने आकर पन्यासजी की वेदना के लिए हमदर्दी प्रकट नहीं की हो। ____आखरि दूसरे दिन पांच बजे पन्यासजी का हंसा राजा उड़ गया। बस इस बात की खबर पहुंचते ही शहर में हा-हा कार मच गया। शोक के काले बादल चारों ओर छा गये इस प्रकार से एक महात्मा का अकाल मृत्यु श्री संघ को तो क्या पर जैनेत्तर लोगों में बड़ा भारी दुःख उत्पन्न कर रहा था । कई लोग तोयहाँ तक भी कहने लग गये कि एक यति ने पन्यासजी को जान से मा रडाला ऐसे हत्यारा का मुख देखने में भी बज्रपाप लगता है इस को उपासरा से ही नहीं पर शहर से निकाल देना चाहिये वरना यह किसी और मनुष्य का भक्षण कर लेगा इत्यादि। __ भक्त लोगों ने रात्रि से ही विमान की सामग्री एकत्र कर विमान (मांडी) बनाना शुरू कर दिया वे लोग भक्ति की धून में इस प्रकार का विमान बनाया कि सूरत में ऐसा विमान पूर्व शायद ही बना हो । पन्यासजी के मृत्यु कलेवर को उस विमान में बैठा कर जब स्मशान की ओर चले तो उस समय इतने मनुष्यों की भीड़ थी कि जिन्हों की गिनती लगानी मुश्किल थी क्या जैन और क्या जैनेशर क्या हिन्दू और क्या मुसलमान हजारों की मेदनी स्मशान यात्रा के लिये एकत्र हो श्रीमान पन्यासजी महाराज की प्रशंसा से गगन गूंजा दिया और उन निर्दय दैत्य एवं काली

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