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ओसियां में मुनिज । की दीक्षा पारा को याद करने लगे । उस समय बाहार से आये हुए श्रावकों, बोर्डिंग के विद्यार्थी, मास्टरों और मुनीमजी को जयनाद से मन्दिर गूंज उठा था। जब दीक्षा की क्रिया समाप्त हुई, तो चैत्यवन्दन कर मन्दिर के बाहार आये । मुनिश्री के साथ सब ने पहिले तो गुरुवर को वन्दन किया, पश्चात् सब लोगों ने मुनिश्री को विधि पूर्वक वन्दन किया । आज ओसियां तीर्थ पर सैंकड़ों वर्षों से यह आनन्द का कार्य इतिहास के पृष्ठों पर सुवर्णाक्षरों में लिखने योग्य सम्पन्न हुआ है। ___ मुनिश्री की दीक्षा के कारण जोधपुर के बहुत से सज्जन ओसियाँ आये थे, उसमें भंडारी जी चन्दनचन्दजी भी थे । आप के दिल में बहुत समय से भावना थी कि योगिराज को कोसने ले जा कर मन्दिर का दर्शन कराऊं। अतः इस समय भी आपने भक्तभाव से प्रेरित हो योगिराज श्री को विनती की कि यदि इस समय अवसर हो तो कौसनानी की ओर पधारें। मैं यहाँ से कौसना तक आपकी सेवा में रहने को तैयार हूँ, इत्यादि बहुत
आग्रह से प्रार्थना की। ___ योगीराज बड़े ही ध्यानी थे, एक तो आप ओसियों में करीब १ वर्ष भर रह चुके थे। दूसरे मुनिश्री को दीक्षा देने से एक से दो हो जाने में भी आपके ध्यान का समय कुछ खर्च हो जाता था, तीसरे वहाँ बोडिंग होने से यद्यपि आप इस खटपट से अलग ही रहते थे तदापि थोड़ा बहुत समय इसमें भी व्यय करना पड़ता था, इन कारणों से अब भापका दिल उठ गया था, इधर भंडारीजी का निमित्त कारण मिल गया । बस, आपने तो