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लोहावट में साधुओं का मिलाप फलौदी वालों की इच्छा थी कि मुनिश्री विहार कर शीघ हो फलोदी पधार जायं किन्तु लोहावट वाले भी ऐसे सुअवसर को हाथ से कब जाने देने वाले थे, इधर फाल्गुन चतुर्मासा भी श्रा गया, ज्यों त्यों कर ८ दिनों की स्थिरता तो करवा ही दी। दोनों वास के मन्दिरों एवं दादावाड़ी के दर्शन किये तथा हमेशा प्रातः काल में व्याख्यान तथा मध्यान्ह में ज्ञान चर्चा होती रही। पाठ दिनों में फलौदी वालों ने तो फलौदो और लोहावट के बीच मानों तांता सा लगा दिया।
व्याख्यान में जैन जैनत्तर लोग इतने एकत्रित होते थे कि इत नी बड़ी धर्मशाला को छोड़ कर मैदान में व्याख्यान देनापड़ता था। ___लोहावट में मालचन्दजी कोचर एक अच्छे विद्वान श्रावक थे, किन्तु अपेक्षा बाद को न समझने के कारण आपके दिल में कई प्रकार की शंकाओं ने स्थान कर लिया था, मुनिश्री ने हेतु युक्ति
और शास्त्रीयप्रमाणों द्वाग सब प्रकार से समाधान कर दिया; यही कारण था कि आपके घराने को लग्न मुनिश्री की ओर विशेष झुक गई। ___लोहावट. में खरतरगच्छीय मुनिश्री तिलोकसागरजी तथा
आपको साध्वियां का भी अच्छा जमघट था, वे लोग हमेशा मुनिश्री का व्याख्यान सुनते थे । आपकी प्रकृति चातुर्य और विद्वता देख कर उन लोगों ने विचार किया कि यदि ऐसा विद्वान् साधु अपने सिघाड़ा में आ जाय तो गच्छ और सिघाड़ा की बड़ी भारी उन्नति हो सकती है, अतः उन्होंने कोशिश तो बहुत की किन्तु आपने कहा कि मुझे एक बार फलौदो जाना है।
चैत्र कृष्णा २ को मुनिश्री वहाँ से चीले पधारे जो कि फलौदी २३