________________
आदर्श-ज्ञान- द्वितीय खण्ड
४१०
नहीं लेना, कभी भूल जायें तो दूसरे दिन एक विगई या नमक छोड़ देना । प्रतिज्ञा करवा दी ।
सूरज ० - वन्दना कर सीधे ही पूज्यजी के पास गये तथा मुनिश्री के साथ जो वार्तालाप हुआ वह सब निवेदन कर दिया, पूज्यजी ने मन में तो शायद पश्चाताप किया ही होगा किंतु ऊपर से कुछ भी नहीं कहा ।
पूज्यजी महाराज का एक आचारांगसूत्र मुनिश्री के पास था, और मुनिश्री का एक जीवाभिगमसूत्र पूज्यजी के पास था, जब खीचन्द में आप दोनों पधारे तो पूज्यजी ने एक साधु के साथ कहलाया कि गयवरचंदजी को कहना कि मेरा आचारांग सूत्र तुम्हारे पास है, यदि तुम्हारी इच्छा हो तो दे दो, क्योंकि हमें आवश्यकता है । मुनिश्री ने उत्तर दिया कि एक श्राचारांग ही क्यों, पर यदि आपको कोई भी सूत्र चाहिये तो मैं सेवा में उपस्थित कर सकता हूँ, कारण आपका मेरे पर बड़ा भारी उपकार है, यदि आपको साधु के योग्य और भी किसी वस्तु की आवश्यकता हो तो कृपा कर फरमावें, मैं सेवा में हाजिर कर सकता हूँ । मेरा जीवाभिगम सूत्र आपके पास है और यदि आप को उसकी आवश्यकता न हो एवं श्रापकी इच्छा हो तो बक्शीश करावें, आपका आचारांग सूत्र फलौदी पड़ा है, यदि आप फरमावें तो मंगवा दूं । साधु ने मुनिश्री के कहे हुए सब समाचार पूज्यजी महा राज के पास जाकर पूर्णतः वर्णन कर दिये, पूज्यजी समझ गये कि गयवर चंदजी पक्का मुत्सद्दी । एवं बोलने में बड़ा ही मीठा है किन्तु जीवाभिगम मिलने पर आचारांग सूत्र देने की उनकी इच्छा है, अतः न जीवाभिगम सूत्र देना है, और न आचारांग लेना है ।