________________
आदर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड
४७० हट को छोड़कर मूर्तिपूजक जैन बन जाना चाहिये । अब भी समय है वरन् इस कुत्त' की माफिक पश्चात्ताप करना पड़ेगा और अन्त में माफी मांग कर मूर्तिपूजा स्वीकार करनी पड़ेगी; समझे न ? इसको सुनकर हँसी करने वाले हूँढ़ियों को लज्जित होना पड़ा और कहा कि मुनिजी ने हमारे लिए कुत्ते की योनि बतलाई है इत्यादि।
आप एक मास सादड़ी में ठहर कर जो कुछ करना था वह कार्य कर लिया, इस प्रकार हमेशा व्याख्यान होने से लोगों की श्रद्धा खूब मजबूत हो गई । सादड़ी में आपका पधारना मूर्ति पूजक समाज के लिये इतना लाभ का कारण हुआ कि मैं लेखनी द्वारा लिख ही नहीं सकता हूँ। ७२ श्रीकेसरियाजी की यात्रार्थ मेवाड़ में
वहाँ से आप रानकपुरजी पधारे, लगभग ७०० श्रावक श्राविकाएं साथ में थे, मन्दिरों का दर्शन कर परमानंद को प्राप्त हुए; एक लड़ाई का स्तवन बना कर प्रभु के सामने बोल दिया, बाद श्रावकों ने मुँवारे खोलाये उनके भी दर्शन किये यानी अच्छी तरह से यात्रा की । भाप तथा प्रभावविजयजी और जिनश्री आदि साध्वियां, भंडारीजी या बछराजजी पोरवाल वगैरह कई श्रावक एवम बहुत सी बाइयाँ वगैरह वहाँ से अवलीपहाड़ चढ़ कर भानपुर पधारे।
प्लेग के कारण भानपुर के लोग आपको ग्राम में आने नहीं दिये, इसलिए आप गांव के बाहर किसी कुए पर ठहर गये । भंडारी जी ने ग्राम में जाकर राजअधिकारी लोगों से कहा कि आप बड़ी भारी भूल करते हो, कि ऐसे महात्मा सहज ही में पधार गये