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आदर्श- ज्ञान-द्वितीय खण्ड
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आपके उतरने के लिये नागौरी सराय के पास एक मकान पहिले से ही मुक़रर्र कर रखा था, आप मन्दिरों के दर्शन करते हुए मकान पर आये और मंगलाचरण के बाद थोड़ा सा व्याख्यान दिया, केवल एक ही गाथा का उच्चारण किया जो :
नय भंग पमाणेहिं, जो आया सब बपहिं । सम्मदड्डि उस नात्रो, भणिय वियरायेहिं ॥ १ ॥ इसका अर्थ आपने साधारण तौर पर किया जिसमें एक घंटा लग गया, गुर्जर श्रावक तो आपकी देशना सुन कर चकित हो गये । जो उनके लिये इस प्रकार नय निक्षेप प्रमाण स्याद्वाद से आत्मा का स्वरूप सुनना अपूर्व ही था पाँच सज्जनों की ओर से श्रीफलादि पाँच प्रभावना के साथ सभा विसर्जन हुई । तत्पश्चात् गोचरी पानी से निवृत होने पर कई मारवाड़ी और गुजराती श्रावक श्राये और व्याख्यान के लिये प्रार्थना की पर आपश्री ने फरमाया कि मैं तो अहमदाबाद के मन्दिरों के दर्शन करने को आया हूँ, और मेरे स्थिरता भी कम ही है । मन्दिरों के दर्शनों का समय भी सुबह का है और व्याख्यान का समय भी सुबह का होता है, अतः दोनों काम एक समय कैसे बन सकते हैं ? विशेषतया मारवाड़ी समाज ने जोर दे कर कहा कि यहाँ गुजरातियों का ही साम्राज्य है, न तो मारवाड़ी साधु यहाँ विशेष हैं और न आपके जैसा व्याख्यान हो होता है, अतः गुर्जरों को मालूम तो हो जावेगा कि मारवाड़ में भी ऐसे २ विद्वान साधु विद्यमान हैं, अतः आप हमारी प्रार्थना स्वीकार कर व्याख्यान तो कल से शुरू कर ही दें । मुनिश्री ने श्रावकों की आग्रहपूर्वक प्रार्थना को स्वीकार कर दूसरे दिन से ही व्याख्यान चालू कर दिया ।