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इंढियों का पराजय
बख्ता० – पन्ने तो जड़ हैं । मुनि० तुम उसको मानते हो या नहीं ?
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सूत्र
बता० --- सूत्र तो मानते हैं पर वन्दन पूजन नहीं करते हैं । मुनि० - यही तो तुम्हारी अज्ञानता है कि जिस सूत्र के द्वारा सद् ज्ञान प्राप्ति कर आत्म-कल्याण करना चाहते हो, फिर भी उन सूत्रों को अवन्दनीक ही समझते हो ।
इत्यादि कई प्रश्नोत्तर हुए, वहाँ से आकर बजार में व्याख्यान देने के आशय से जाकर पाटे पर बैठ गये । व्याख्यान में विषय था मूर्ति पूजा का । जिसके लिए शास्त्रों के मूलपाठों के साथ हूँ दिये साधुओं की २० तसवीरे ( फोटो ) नाम ले २ कर बतलाइ जो कि आपने पहले से ही संग्रह कर रखी थीं । आपने कहा कि यह मूर्ति हैं या नहीं ? यदि इनके नाम लेकर इन फोटो की कोई बेअदबी करें तो हूँ ढ़ियों का दिल दुःखे या नहीं ? व्याख्यान के पाटे के दोनों तरक्क दुकानों पर बहुत से दूँ ढ़िये बैठे २ सुन रहे थे ।
इस व्याख्यान में एक ऐसी बात हुई कि व्शख्यान का पाटा मैदान में जो चारों ओर से खुला था; पीछे से एक कुत्ता पाटे के नीचे होकर स्थापनाजी के पास आ गया तो दूँ ढ़िये लोग हँसने लगे । मुनिश्री ने कहा, 'अरे कुत्ते ! तूं अब क्या माफी माँगने को आया है ? शायद इशारा करता है कि मैं मूर्ति मानने को आया हूँ पर मनुष्य के भव में जब तुम्मको किसी ने उपदेश दिया होगा उस समय यदि मूर्ति मान ली होती तो इस कुत्ते की योनि में क्यों आता । खैर, मैं तो आज भी उपदेश देता हूँ कि जिस किसी को कुत्ता और कुत्ते जैसी योनि से बचना हो तो मूर्त्ति निंदकों की मिथ्या श्रद्धा एवं
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