________________
४७३
विकट परिस्थित में बिहार
नींबू एवं शाक ले लिया जिसका कि आपको बहुत ही शौक़ था तीसरे भोजन कर रवाना हुए और हाथ में पानी का घड़ा भी था 'फाल्गुन मास का ताप भी जोर से पड़ रहा था । आधे मील भी नहीं गये कि भंडारीजी घबरा गये और आपके नेत्र फिरने लगे, अतः एक माड़ के नीचे थोड़ी देर बैठ गये । उस विकट अवस्था में भंडारीजी के पास जो पुस्तकें व कौसाने के मंदिर की रसीदें, टीप की बही वगैरह का जो वजन था वह मुनिश्री ने उठाया और ज्यों त्यों कर खेरवाड़ा की छावनी तक पहुँचे, किंतु वहाँ सिपाही दूर से ही पुकार कर रहे थे कि 'अंदर नहीं जाना' २ भंडारीजी विचार में पड़ गये; दिन तो रह गया थोड़ा, ग्राम में जाने नहीं देते, अब क्या करना चाहिये । फिर हिम्मत कर आगे चले, पिछले दिन में न तो रसोई बनाई और न भोजन किया, फिर चार मील चलने पर एक भीलों का प्राम आया, उस समय की विकट परिस्थिति सूर्य से भी देखी नहीं गई अतः वह भी अस्ताचल की ओर भाग छूटा अँधेरे ने अपना प्रभाव जमाना शुरू कर दिया, ग्राम के पास में जाते ही चारों ओर से पुकार होने लगी, 'गांव में नहीं आना' २ पुनः भंडारीजी विचार में पड़ गये, मुनिश्री ने कहा, भंडारीजी ! यह झाड़ पा गया है, इसके पास बैठ जाओ, थोड़ी रात्रि चली जावे तो फिर ठहरने की तजबीज करना । बिकट अवस्था इसी का ही नाम है, भूखे प्यासे दोनों कैर का माड़ के पास बैठ गये, जब थाड़ी-सी रात्रि गई और सब लोग घरों में जाकर सो गये तब भंडारीजी ने एक नजदीक के घर में कुछ मिठाई और चार आने के पैसे लेकर गये। भीलनी को देकर पूछा, बाई इस ग्राम में किन लोगों के घर हैं ? उत्तर-भीलों के ! अच्छाबाई, हम