________________
अहमदाबाद के धावक
श्रावकः -- लज्जित थई गया, तथापि पूछवा लाग्या के साहेब तमे किया सिंघाड़ ना हो ?
४८५
मुनि० - सिंघाड़ा बधा सड़ी गया छे श्रमे लिए वीरना साधु । श्रावक० – पण तमारे दीक्षा गुरू कौन छे ? मुनि०- परम योगीराज मुनिश्री रत्नविजयजी महाराज जो तमारे उजवाई नी धर्मशाला मां चौमासौ रही गयेला छे । श्रावक० - बहु भक्तिपूर्वक कहवा लाग्या के साहेब पधारो भात पानी नो लाभ श्रापो ?
1
मुनि० - श्रावको ! श्रमे तमने एटलो उपदेश आप्योते केवल भात पाणी माटे नथी श्राप्यो, पर तमारो कर्तव्य समझाव्यो छे कारण तमे जैन छो । गमे तेओ वेषधारी होय तो आहार पानी आपवा मां थोड़ी पण बेदरकारी नज होवी जोइए, शुं तमें वस्तुपाल तेजपाल नो चरित्र नथी सांभल्यो के ते एक पतित साधु ने प्रदक्षिणापूर्वक वंदन कीधी हती, अने ते साधु पोतानो पतित आचार छोड़ी, उम्र बिहारी बनी गयो हतो तो पछी आहार पानी आपवा मां शुरूं नुकसान छे ।
श्रावक० - चालो साहेब वक्त बहु थई गयो छे ।
मुनिः - तमारी भावना छे, एटले तमने लाभ थई गयो छे अमारे तो आज उपवास छे ते पण चौवीहार |
श्रावक० - ना साहेब भात पाणी नो लाभ तो आपवो ज पड़शे । मुनि० - कहीदीर्धुने मारे चौवीहार उपवास छे । श्रावक० - आप क्या रे उपवास ना पञ्चरकाण किधा छे !
मुनि० -- हमणा तमारे पास आव्या पहला । श्रावक - अरे साहिब तो उपवास श्रमारे कारण श्रमारी
३१