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आदर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड
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भंडारीजी-इसका कारण क्या है ? फूल०-साधु पना छोड़कर संवेगी बन गये हैं ?
भंडारी -यही कारण है या गयवरचंदजी में चारित्र संबंधी भी कोई दोष है ? ____ फूल-- नहीं भंडारीजी ! चारित्रसंबन्धी दोष तो सेरी समझ में कुछ भी नहीं है । सब ऋद्धि को छोड़ कर जवानी में वैराग्य के साथ दीक्षा ली एवं गयवरचंदजी मेरे पास में रहे हुए हैं। किसी के ऊपर झूठा दोष कैसे लगादें; गयवरचंदजी त्यागा वैरागी हैं परन्तु पाषाण उपासक बन पत्थर को नमस्कार करते हैं ।
भडारी-मन में समझ गये कि यह शीतलदासजी, तो अग्नि के ही पुतले हैं; मैंने तो समझा था कि फूलचंदजी जैसा कोई साधु है ही नहीं किंतु आज तो इनके हृदय के भाव इस प्रकार निकल रहे हैं । खैर, अब पूर्ण निर्णय ही कर लो। क्यों महाराज वे पत्थर को नमस्कार कैसे करते हैं ? __फूल-मन्दिर में मूर्ति पत्थर की है जिसको कि वे नमस्कार
भंडारी०-किन्तु मूर्ति तीर्थङ्करों की है, और नमोत्थुणां भी तीर्थङ्करों को ही देते हैं । यों तो आपका शरीर हड्डी मांस का है और हम आपको भी नमस्कार करते हैं।
फूल-ठीक आपने व्याख्यान में क्या सुना ?
भंडारीक-एक व्यक्ति ने व्याख्यान में प्रश्न किया था कि ट्रॅढ़िया पेशाब को काम में लाते हैं या नहीं? गयवरचन्दजी महाराज ने इस के उत्तर में कहा कि मैं ऐसे प्रश्न का उत्तर देना नहीं चाहता हूँ, यदि आपको निर्णय ही करना है, तो स्वामी फूलचन्द