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जोधपुर में चातुर्मास
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चतुर्मास के अंदर यों तो फलौदी, लोहावट, खीचंद, बीसल-पुर, सेलावास, पाली, और सादड़ी वगैरह के बहुत लोग दर्शनार्थ आये थे, पर चतुर्मास की समाप्ति के दिनों में जालौर, बाड़मेर, वाढोतरा, गढ़शिवाना, बीसलपुर, सेलावास, पाली और सादड़ी वगैरह कई ग्रामों के लोग विनती करने को आये थे और अपने अपने नगर की ओर पधारने की श्राग्रहपूर्वक विनता भी करी, किंतु आपको तो गुजरात की ओर पधारना था । और इसके लिये जाने का रास्ता पाली हो कर ही था अतः पाली वाले हो भाग्यशाली थे कि उनकी विनती स्वीकार हो गई ।
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जोधपुर में चतुर्मास रहने से धर्म की उन्नति बहुत हुई । इस वर्ष में ५०० प्रतिएं 'डंके पर चोट' जो ढूँढ़ियों के 'जाहिर डंका' के प्रतिकार में थी; १००० प्रतिएं 'स्तवन संग्रह' भाग तीसरे की, और १००० प्रति 'तपागच्छ क्रिया-विधि' की; एवं २५०० प्रतिएं छपी थीं ।
जोधपुर में मुनिश्री की यों तो दीपचंदजी पारख कुनणमलजी नथमलजी भुरंट, जालमचंदजी, नैनमलजी, हस्तीमलजी, धनपत - 'चंदजी, मानमलजी वकील वगैरह ने भक्तिपूर्वक सेवा करी थी, किंतु भंडारीजी चन्दनचन्दजी साहब की सेवा ही नहीं अपितु समय २ पर नेक सलाह बहुत प्रसंशनीय थी ।
चतुर्मास समाप्त होते ही आप मंडोर की यात्रा कर महा-मंदिर पधारे; साध्वी ज्ञानश्री, वल्लभश्री वगैरह भी महा-मन्दिर आई । एक दिन साध्वी किसी कारण गृहस्थी के वहाँ से एक. पीतल की परात लाई थी, जिसको देख ढूँढ़िया निंदा करने लग