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चैत्य परिपाटी का महोत्सव मंडेगी । हम लोगों ने स्थायी फंड सेठजी केसरीमल जी की योग्यता पर सौंपा था न कि गणेशमलजी की उइंडता पर । यदि खरतर लोग इस प्रकार का अन्याय करेंगे तो कल ही सब हिसाब ले लिया जावेगा, इत्यादि। __इस पर लिछमणदासजी भंशाली ने कहा कि जिस प्रकार यह स्वामीवात्सल्य स्थायी चंदा से हुआ है, उसी प्रकार दूसरे पर्युषण के बाद शुक्ला १० को स्वामिवात्सल्य स्थायी चंदा से हो जायगा । यदि सेठजी नहीं करें तो तमाम खर्चा मैं मेरा घराघरू दूंगा, इस बात की तहरीर लिख दी तब ४ बजे गुराँ के तालाब जाने को तपागच्छ वालों को इजाजत मिली, समय थोड़ा होने से कोई थोड़े से मनुष्य गये होंगे, इस खेंच में खरतरों को नीचा देखना पड़ा । ठीक है औरतों के कहने पर काम करने वालों का यही तो हाल हुआ करता है ।
मुनिश्री समझ गये कि खरतरों की बड़ी कृतघ्नता है, इनको ज्ञान पढ़ाना मानो सर्प को दूध पिलाना है, खैर इस परस्पर की खेंचा तान से तपागच्छ कुछ जागृत होकर समझने लगे कि खरतर गच्छ वाले बड़ा अन्याय करते है। इतना बड़ा तपागच्छ जिसको कुछ समझते भी नहीं हैं । इधर दीपचन्दजी पारख ने एक 'तपागच्छ की विधि' नामक छोटी सी किताब की १००० प्रतिए छपा कर गच्छ वालों को दे दी कि वे अपनी गच्छ की क्रिया का ज्ञान कर स्वगच्छ की क्रिया करने में तत्पर हो गये।
दूसरे पर्युषण के लिये तो फिर कहना ही क्या था ? क्योंकि सब के दिल में उमंग और उत्साह था; बड़े ही धूम-धाम एवं