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गुरां के तालाब का स्वामिवात्सल्य
नहीं है; मैं एक अर्ज करना चाहता हूँ कि प्रथम तो यह बात तय हो गई थी, दूसरे जब फंड में तपागच्छ का अधिक चंदा था तो आपको अधिकार भी क्या कि आप अकेले कुछ कर सकें । खैर, आपने कर भी लिया तो समुदाय में वात्सल्यता भाव बना रहे; इस पाराय से मैं कहता हूँ किः
१-यह स्वामिवात्सल्य सेठजी अपनी ओर से कर दें तो मेरी इतनी हैसियत नहीं है तथापि दूसरे भाद्रपद का स्वामिवात्सल्य में मेरी ओर से कर दूंगा।
२--यह स्वामिवात्सल्य खरतरों के चंदा से कर लें, तो दूसरा स्वामिवात्सल्य तपों के चंदा से कर लेंगे।
३-या दोनों स्वामिवात्सल्य स्थायी चंदा से हो जानेचाहिए।
इन तीन बातों से आप जिस को स्वीकार करलें वह ही हम लोग करने को तैयार हैं । सबने कहा कि नैनमलजी का कहना ठीक है, किन्तु साध्वियों अपनी बात रखनी चाहती थीं उनकी सलाह से खरतरों ने तीन बातों में से किसी एक को भी स्वीकार न कर उठ गये । इस हालत में तपागच्छ वालों ने अपने गच्छ में कहला दिया कि जब तक निपटारा न हो वहाँ तक अपने गच्छ का एक मनुष्य भी खरतरों के स्वामिवात्सल्य में भाग न लें।
इधर भट्टारकजी को खबर पड़ी तो उन्होंने अपने आदमी एवम् वकील को तालाब पर भेज कर कहला दिया कि तालाब का मंदिर हमारा है, अभी हमारे पर्युषण नहीं हुए, अतः आप भगवान की सवारी नहीं निकाल सकते हो। भट्टारकजी के कहने से आदमी ने श्रीसंघ की सौगंध दिला दी। वकील ने