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भादर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड
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फूल-आप के और तपस्वीजी के क्या बातें हुई ? मुझे क्या मालूम ?
भंडारी०-तपस्वी साधु को बुला कर उनसे ही सब हाल वापिस दुहरा दिया।
फूल०-यह तो हमारा जैसा आचार है वैसा ही हम करते हैं इस के लिए आप को किस ने पंच बनाया जो कि आप निर्णय करने की कोशिश करते हैं ? - भंडारीजी समझ गये और आप को अभी भोजन करना था। वे सीधे हो हवेली आय और हुक्म लगा दिया कि ढूँढ़िया साधुओं का आचार व्यवहार ठीक नहीं है अतः बसाली ( मकान में प्रवेश होता ही पहला स्थान) में खड़ा रख रोटी दे दो यदि अंदर आगये
और पात्रा रख दिया तो सब जगह धोनी पड़ेगी इत्यादि । ___ भंडारीजी भोजन कर सीधे ही मुनिश्री के पास आये और फूलचंदजी के साथ चर्चा करने का विवरण (प्रोग्राम ) सुनाया । ___ मुनि०-बहुत खुशी की बात है किंतु आपने समय, स्थान भौर विषय भी निर्णय कर लिया है या नहीं ? तथा दो चार मध्यस्थ भी होने चाहिए। ___भंडारीक-फूलचंदजी आपको तीन प्रश्न पूछने का निश्चय किया है ( १ ) रात्रि में पानी रखना किस शास्त्र में लिखा है ( २ ) शत्रुञ्जय को तीर्थ किस शास्त्र में कहा है (३) किस श्रावक श्राविका ने जिन प्रतिमा की पूजा को है ? और स्थान के लिए मेरा नोहरा तथा समय या दिन आप फरमावे वही रख लिया जावे । और मध्यस्थों के लिये अभी निर्णय नहीं किया है।
मुनि:-अभी तो हमारे पर्युषणों का व्याख्यान है, पर्युषण