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शास्त्रार्थ में विजय
के बाद भाद्र शुक्ल ६ या ७ का दिन मुक़र्रर कर दिलावें ।
भंडारी० - यदि आदित्यवार का दिन रख दिया जावे तो हम सब लोगों को भी सुभीता रहे तथा सब लोग प्रश्नोत्तर सुनभी, लें। मुनि० - अच्छा आदित्यवार का दिन रख लो, किंतु मध्यस्थ तो अवश्य होना ही चाहिए ।
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भंडारी० — ठीक, मैं फूलचंदजी से पूछ लूँगा ।
इधर खरतरगच्छ बालों के पर्युषण सानंद समाप्त हो गये, मुनिश्री ने सब विधिविधान बिना भेद भाव के करवा दिया ।
६६ — ढूँढियों के साथ शास्त्रार्थ में विजय
भंडारीजी ने चर्चा का दिन भाद्रव शुद्ध ७ का रखा श्रतः उसी दिन मुनिश्री अपने सत्रों कों साथ ले तथा दीपचंदजी पारख, मानमलजी खीवंसरा एवं और भी कई लोगों के साथ भंडारीजी के नौहरे में क़रीब १ बजे पहुँच गये । जब सूत्रों के साथ मुनिश्री को और मन्दिरमार्गी श्रावकों को बजार से जाते हुए देखा तो ढूँढये श्रावक लछीरामजी सांद और राजमलजी सुनौयत एक दम दोड़ कर फूलचंदजी के मकान पर गये और कहने लगे कि आप यह क्या करते हो ? अपने से निकले हुए साधु को किस कारण बुलाहै ? क्या आप गृहस्थों के सिर फुड़ाओगे ? हम नहीं चाहते हैं कि संवेगियों के साथ शास्त्रार्थ किया जाय ।
फूल० - इसमें क्या हानि है १ भंडारीजी मध्यस्थ हैं।
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