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भादर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड
ट्रॅढ़िये०-कोई भी क्यों न हो, पर अपने को तो चर्चा नहीं करनी।
फूल-मैंने भंडारीजी को वचन दे दिये हैं।
टूदिये०-वचन क्यों दिया ? यदि दे दिया तो प्रायश्चित ले लेना, पर अपने को मकान के बाहर चर्चा के लिये नहीं जाना चाहिए। ___ फूल०-किंतु मैं तो मेरा वचन मूंठा करना नहीं चाहता हूँ तुम कुछ भी कहो मैं तो एक दफा जाऊंगा और अवश्य जाऊंगा। - ढूंढ़िये-आप तो क्या, किंतु फलौदी में लोगों के बहुत कहने पर भी पूज्यजी ने चर्चा नहीं की तो आप के ही ऐसी कौन पड़ी है श्राप मनाई करते हुए भी चर्चा करने को तैयार हो गये हो ?
फूल-मेरी उम्र में यह पहिला ही मौका है कि तुम मेरे वचनों को असत्य करवाते हो। - ढूंढ़िये०-भले ही आप इसका प्रायश्चित हमको दे देना पर हम आप को चर्चा करने को तो हर्गिज भी नहीं जाने देंगे। यदि इस उपरांत भी आप नहीं मानेंगे एवं अपनी हठ नहीं छोड़ोगे तो हम आपको न तो अपने साधु मानेंगे और न वन्दना व्यवहार ही करेंगे । आप खूब सोच लीजिये ।
फूल-विचार में पड़ गये।
इधर भंडारीजी का नोहरा जैन-जैनेत्तरों से भर गया और वे सुनने के इच्छुक थे कि देखें संवेगी और ढूंढ़ियों के क्या चर्चा होगी ? समय दो बजने का आ गया, फूलचंदजी दृष्टिगोचर नहीं हुए, अतः मुनिश्री ने भंडारीजी को कहा फूलचंदजी अभी