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भंडारीजी और हूँढ़ियों के
भी धो लेते हैं, कभी २ मुँहपत्ती भी धो लेते हैं, क्योंकि इसमें खार होता है जिससे कपड़ा साफ हो जाता है ।
भंडारीजी को घृणा आने लगी, किन्तु इतना ही ठीक हुआ कि आपने अभी तक भोजन नहीं किया था नहीं तो के हो जाती।
खैर, भँडारीजी ने आगे चल कर सवाल किया कि, आप पेशाब पीते तो नहीं हो न ?
तपस्वी-कभी शीतकाल में खांसी की व्याधि हो जाती है तब थोड़ा सा पी भी लेते हैं। ___ भंडारी-हाय ! हाय ! यह ओसवालों के गुरू अघोरी साधु । शायद् हमारे घरों में ऐसे अघोरियों के आने से ही लक्ष्मी देवी रुष्ट होगई हा तथा हमारे पुन्य भी इसीलिए ही क्षीण हो गये हो कि एक समय तो हम राज चलाते थे, लेकिन आज छोटी सी नौकरी के लिए मुह ताकना पड़ता है। भंडारीजी इस प्रकार पश्चाताप कर ही रहे थे कि इतने में फूलचंदजी गौचरो ले कर आगये ।
फूल०-क्यों भंडारीजी ! आज व्याख्यान में नहीं आये,आज तो पर्व की बड़ी तिथी थी ?
भंडारीजो०-श्राज धर्मशाला में चला गया था। फूल०-क्या गयवरचंदजी का व्याख्यान सुनने को ? भडारी०-हां और इस बख्त खरतरगच्छ के पर्युषण भी हैं। फून-किंतु ऐसे पतितों का व्याख्यान सुनने में क्या लाभ है? भंडारी०-पतित कौन है ? फूल-गयवरचंदजी हैं। भंडारी०-क्या गवरचंदजी महाराज पतित हैं । फूल-हां पतित हैं।