________________
आदर्श-ज्ञान- द्वितीय खण्ड
* चंदनी वैद्य, वग़ैरह: के साथ पूज्यजी महाराज के पास गये । कुशल-क्षेम पूछकर बैठ गये ।
पूज्यजो० --- श्राप को कुछ पूछना है ?
फूलचंदजी - जी हां।
ܘ
पूज्य ० – पछो ।
- ।
Q
फूल० - पूछना यही है कि हम लोग देश विदेश जाकर कई प्रकार की कठिनाइयों एवं अनेकों मुसीबतें उठा कर पैसा पैदा कर के लाते हैं । हमारे आचार्य व साधु आते हैं, वे हम लोगों को उपदेश देकर अट्ठाई महोत्सव, वरघोड़ा, इत्यादि धर्म के नाम पर हजारों रुपये खर्च करवा देते हैं, और इसमें मोक्ष स्वर्गादि बतलाते हैं, और आप उसमें पाप कहते हो यदि वास्तव में पाप ही होता हो तो हम दोनों तरफ से नुक़सान उठाते हैं। यदि दूसरा संवेगी साधु हो तो उसमें पक्षपात का संभव हो सकता है, किंतु हमारे भाग्योदय से इधर तो आप जैसे शांतिस्वभावी विद्वानों का पधारना हुआ, और उधर आपकेही पढ़ाये हुए आपके शिष्य ज्ञानसुंदरजी महाराज का बिराजना है, ऐसा सुश्रवसर हमारे लिये फिर हाथ लगना कठिन है; अतः आप गुरु शिष्य एक स्थान पर बिराज कर हम लोगों को रास्ता बतला दीजिये; जिससे कि आपको भी बड़ा भारी लाभ होवेगा और हम लोगों का कल्याण हो जावेगा । पूज्यजी- मैं इस प्रकार वाद-विवाद करना नहीं चाहता हूँ । फूल० - इसमें वाद-विवाद को स्थान ही कहाँ मिलता है, कारण, आप दोनों महात्मा सूत्रों के पाठों से निर्णय कर लें, हम दोनों श्रर के श्रावक मौन रह कर सुनते रहेंगे, तथा आप दोनों का एक निर्णय होने पर हम भी उसी मार्ग को स्वीकार कर
-