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६४ फलादी मे पूज्यजी और मुनिज का मिलाप
फलोदी के स्थानकवासी श्रावकों के श्राग्रह से पूज्यजी महा राज फलोदी पधारे। इधर खीचन्द में अनोपबाई की दीक्षा बड़े ही धूमधाम से मुनिश्री के हाथों से हो गई थी, बाद मुनिश्री लोहावट को ओर विहार कर रहे थे, किन्तु फलोदी के अग्रसर लोगों ने आकर स्पष्ट कह दिया कि एक बार तो आप को फलोदी चलना ही पड़ेगा, नहीं तो ढूंढ़िये कह देंगे कि पूज्यजी से डर कर ज्ञानसुंदरजी भाग गये ।
मुनि०- पूज्यजी महाराज ने तो यहां श्राते ही व्याख्यान में फरमा दिया कि हम मूर्त्ति मानते हैं, फिर फलोदी चल कर क्या करना है ?
श्रावक०- -कुछ भी हो आप को एक दफे चलना ही पड़ेगा । मुनि श्रावकों के लिहाज के मारे विहार कर फलोदी गये, दोनों ओर व्याख्यान होते र किन्तु फलोदी में ढूंढ़ियों के घर थोड़े और मूर्तिपूजकों का समुदाय अधिक होने से पूज्यजी के बनिस्बत मुनिश्री के व्याख्यान में परिषदा का जमघट खूब जोरदार रहता था ।
एक दिन स्थानकवासी श्रावकों ने मर्त्तिपूजकों से आग्रह किया कि पूज्यजी महाराज के पास पधारें और प्रश्न वग़ैरहः करें। इस पर फूलचंदजी माबक, रेखचंदजी लोकड़, गाढ़मलजी पारख, मेघराज जी मुनेयित, शोभागमलजी नेमीचंदजी गोलेच्छा वग़ैरहः मूर्तिपूजक श्रावक, स्था० श्रावक, बखतावर चंदजी ढड्ढा,