________________
४१७
जिनप्रतमा-जिनपारखी
करवा दें तो फलोदी में एक हजार घर मूर्तिपूजकों के हैं, उन सब को मैं स्थानकवासी बना दूं। ____यह बात स्थानकवासी श्रावकों के पास पहुंची और उन्होंने पूज्यजी के पास जाकर कहा कि आज गयवरचंदजी ने व्याख्यान में कहा है कि यदि पूज्यजी ३२ सूत्रों में से एक आंबिल का पञ्चरकान करवा दें तो मैं १००० घर मूर्तिपूजकों को स्थानकवासी बना हूँ।
पज्य०-गयवरचंदजी बोलने में बड़े ही होशियार हैं; तुम्हें इनकी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए; कहे सो सुन लिया करो।
श्रावक०-क्या ३२ सूत्रों में आंबिल के पञ्चक्खान कराने का पाठ एवं विधान नहीं है ?
पूज्य०-हाँ जैसा संवेगियों में पच्चक्खान के पाठ एयं विधान है वैसा अपने ३२ सूत्रों में नहीं है ।
श्रावक-तो फिर अपने अंदर आंबिल करते हैं उन्हें पच्चक्खान कैसे करवाया जाता है ?
पज्य०-गुरु गम्य एवं परम्परा से ।
श्रावक-किन्तु गुरु गम्य और परम्परा में भी तो कोई पाठ या विधान तो होगा न ? ...
पूज्य०-तुमको कह दिया कि पाठ है पर संवेगियों के जैसे नहीं है क्या इतने में आप समझ नहीं सकते हो।
श्रावक-समझ गये कि आदि धर्म तो संवेगियों का ही है ।
एक दिन जिस रास्ते पूज्यजी महाराज थडिले भूमिका पधारे थे, मुनिश्री एक श्रावक को लेकर उसी रास्ते गये । आपकी इच्छा पूज्यजी महाराज से मिलने की थी, और ऐसा ही हुआ कि जब