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नयी मूर्तियों के लिये सूरीजी का उप संघ के स्वागत के लिए फलोदी लोहावट के कई श्रावक पहिले ही आ पहुँचे थे। विद्यालय के अध्यापक, विद्यार्थी, आये हुए श्रावकगण, मुनीम और मुनिराज गाजे बाजे सहित संघ के सामने गये
और बड़े ही ठाठ से स्वागत कर श्रीसंघ को बधाया और भी श्रीसंघ प्राचीन तीर्थ की यात्रा कर परमानन्द को प्राप्त हुआ। _मन्दिर की भमती की एक कोठरी में कई मूर्तिएं विराजमान थीं, सरिजी की दृष्टि पड़ते ही आपने मुनीम को बुला कर पूछा कि यह नई मूर्तियां कहां से आई, कारण सरिजी ने जोधपुर में कई लोंगे से सुना था कि खरतरगच्छ की साध्वी सुंदरश्री नई मूर्तियों बना कर बिना अञ्जनसिलाका की हुई मूर्तियों मूल्य बेचती हैं और वही मर्तियां अनजान लोग ले जा कर मन्दिरों में स्थापन कर देते हैं । जो चतुर्विध श्री संघ के लिए अपूजनीक होती हुई भी पूजी जाती हैं, इत्यादि । अतः सूरिजी ने मुनीम से पूछा
मुनीम- साहिब यह मूर्तियां जोधपुर थी आवी छ । सूरिजी-कौन लाव्या छ ? मुनीम-सेठजी फूलचंदजी साबे लाव्या।
सरिजो-अरे फूलचंदजी बधी गुजरात ने धूती खादी तो पण तेनी भूख नथी गई एटले जैनधर्म थी विरुद्ध काम कर छे । शुं श्रा मूर्तियां कोई ने आपी तो नथी न ? .. मुनीम - बे ठोकाणे बे त्रिगड़ा पाप्या छ ।
सूरिजी- शुं पैसा लिधा छे न ?
मुनीम--हां साहिब एक एक तीगड़ा ना तीन तीन सौ रूपैया लीधा छै।
सरिजी-तमे मोटा में मोटो जुल्म करो छो, शुं तमारे देवा