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भादर्श-ज्ञान-द्वितीय खण्ड
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तो मालम मालचन्दजी काले और म
लिए चीले श्राये । दूसरे दिन लोहावट बड़े ही धूमधाम से पधारे तो मालूम हुआ कि पूज्यजी महाराज इसी वास में विराजते हैं ।
जिस मालचन्दजी कोचर की आपको भाशा थी, वही मालचन्दजी पूज्यजी के पास गये और मूत्रि के विषय में प्रश्न किया जिसकी चर्चा करीब १॥ घंटे तक चली। आखिर पूज्यजी जान गये कि इनको समझाने में कहीं एक दो साधुओं की श्रद्धा न खो बैठे। __पूज्यजी दूसरे दिन बिसनाई वास में जाकर ९ दिन ठहर वहां से खेतार होकर तीवरी पधार गये, किन्तु वहां भी सुना कि नेमी सूरिजी संघ लेकर आ रहे हैं और उनके पास कई ऊंट तो शास्त्रों की पेटियों से ही भरे रहते हैं। शायद चर्चा का काम पड़ जाके, अतः ऐसे गस्ते को क्यों ग्रहण करें इसलिए आप तीवरी से बालेसर पधार गये, तब ही जाकर पूज्यजी के दिल में शान्ति आई। ६५ लोहावट म सूत्रों की वाचना
जब मुनिश्री लोहावट पधारे तो वहाँ खरतरगच्छीय साधुसागरजी आदि और उनकी वृद्ध साध्वियां देवश्री, प्रतापश्री, प्रेमश्री इत्याद २१ साध्वियें ठहरी हुई थीं। मुनिश्री को ओसियाँ जाना था, परन्तु साधुओं ने मुनिश्री से कहा कि:____"मुनिजी, आपने फलौदी में तो जिनवाणी की खूब झड़ी लगा दो, थोड़ी बहुत बूंदें तो यहाँ भा बरसावें, हम तो कई दिनों से श्राशा किये बैठे थे। कम से कम एक श्री जीवाभिगम सूत्र तो हम लोगों को भी बाँच दीजिये।" ___ मुनिश्री-मुझे ओसियाँ जाना जरूरी है, और श्री जीवाभिगम सूत्र बड़ा भी है, अतः मैं लाचार हूँ।