________________
आदर्श-ज्ञान द्वितीय खण्ड
૧૮૨
1
यदि तहकीकात करने पर हमको मालूम हो जायगा तो हम उस को सख्त दण्ड़ देखेंगे । और आईन्दा से हम ऐसा प्रबंध करेंगे कि कोई भी किसी की निदा नहीं कर सकेगा परन्तु इस समय तो आप कृपा कर क्षमा करें; हम बार बार माफी मांगते हैं । मुनिश्री ने कहा कि आप बाहर पधारें जहां कि सकल श्रीसंघ एकत्र हुआ है और जैसी यहां माभी मांगी है वैसा ही उन से माफी मांग लें और भविष्य में निंदा नहीं करने का विश्वास दिला दें तो मामला शांत हो जावेगा ।
सराय के कमरे में जहाँ कि श्रीसंघ एकत्र हुआ था वहाँ चारों अग्रसरों ने जाकर नम्रता पूर्वक माफी माँगी और प्रतिज्ञा पूर्वक वचन दिया कि भविष्य में हमारी समुदाय से कोई भी आपके देव. गुरु और धर्म की निन्दा नहीं करेंगे, किन्तु श्राप रूपसुन्दरजी को भी कह देना कि वे शान्ति रखें ।
बस इतनी लाचारी, इतनी नम्रता और साथ में माफी मांगने से श्रीसंघ के दिल में रहोमता श्रा गई और उन्हें माफी प्रदान कर उभय समाज में शांति स्थापित की। इस बात की तँ ढ़ियों पर इतनी असर हुई कि वे बाद में निंदा करना तो दूर रहा पर कई तो व्याख्यान में आने लग गये थे और कई लोग मन्दिर के दर्शन करने के लिये हमेशा जाने लग गये ।
फलौदी के हाल बीकानेर पूज्य श्रीलालजी महाराज के पास पहुँच ही जाते थे, वर्तमान हाल पहुँचने पर पूज्यजी की ओर से फलौदी तार आया कि यदि गय वर चंदजी फलौदी में चतुर्मास करे तो हमारा कोई साधु साध्वी वहाँ चतुर्मास न करें अर्थात् वहाँ चतुर्मास करने की मेरी श्राज्ञा नहीं है । इस पर कई साधु