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पुस्तकों का प्रचार
आज दूं ढ़ियों का वेष कैसा है, तथा तेरहपंथी ढूंढ़ियों की आचारना ने जनता पर कैसा बुरा प्रभाव डाला है उसकी भी १००० प्रतियें छपवाई ।
१००० ' चर्चा का पब्लिक नोटिस' - जब शेर के सामने गीदड़ नहीं आ सकता है तब वह पीछे पड़ा २ अपनी बड़ाई किया करता है, इसी तरह हमारे द्व ढ़िये भाई भी घर में घुस कर शास्त्रार्थ करने की डींग हांका करते हैं। अतः मुनिश्री ने एक चर्चा का पब्लिक नोटिस निकाल कर ढढ़ियों को आम तौर से इत्तला दे दी कि यदि तुम ३२ सूत्र जिसमें भी मूलपाठ से चर्चा करना चाहते हो तो हम शास्त्रार्थ करने को तैयार हैं । समय, स्थान, विषय और मध्यस्थ तय करके मैदान में आओ, इस नोटिस की भी १००० प्रतियें छपवा कर वितीर्ण कर दी ।
२००० दादा साहब की बड़ी पूजा - यह किताब श्रीमान् जोगराजजी वैद्य ने आचार्य श्रीरत्नप्रभसूरिजी महाराज की बड़ी पूजा छपवा कर संस्था को भेंट दी थी ।
५००० “देव गुरु वन्दन माला " - सेठ मोतीलालजी और माणकलालजी के परस्पर कुछ लेनदेन का ऐसा झगड़ा पड़ गया कि उन्होंने अदालत तक जाने की तैयारियाँ कर लीं । यदि चले जाते तो दोनों ओर से हजारों का पानी हो जाता। जब मुनिश्री को इस बात की खबर मिली तो दोनों सज्जनों को बुलवा कर कहा कि तुम श्रापस में काका भतीजा, जो बाप बेटे की भांति हो कर भी कचहरी में जाते हो। यह ठीक नहीं है मानलो कि दो चार हजार रुपैये एक के दूसरे की ओर रह गये तो भी कचहरी में जाकर हजारों का धुंश्री करने के बजाय तो घर में ही रहेंगे, आखिर उन समझदारों ने