________________
६३ खीचन्द में पूज्यजी का पधारना
खीचंद में एक विधवा अनोपबाई ज्ञानश्री वल्लभश्री के पास दीक्षा लेने वाली थी, पर उसकी आज्ञा के लिये खेंचातानी थी, अतः साध्वियों ने मुनिश्री से अर्ज की कि आप खीचंद पधार कर व्याख्यान दिला तो दीक्षा का मार्ग निष्कण्टक हो जाय, एवं अच्छा ठाठ रहेगा। साथ में दीक्षा लेने वाली वैरागिन ने भी बहुत आग्रह किया कि मेरे पास कुछ द्रव्य है, मैं उसे आपकी आज्ञनुसार सुकृत में लगाना चाहती हूँ, अतः श्राप अवश्य खीचन्द पधारें। इस हालत में आप खीचन्द पधार गये, जहाँ ४.५ घरों के अतिरिक्त सबके सब ढूंढिया समुदाय के घर थे। __ आपका व्याख्यान प्रातःकाल तथा दोपहर दोनों समय होता था, आप में यह खूबी थी कि क़लम से आप कुछ भी लिखें, पर कोई भी मतवाला आपके पास में आता था तो आप बड़े मधुर वचनों से समझाते थे, यही कारण है कि आप ढूंढ़ियों को जैन बनाने में काफी सफलता पा गये थे। दीक्षा लेने वाली बाई की
ओर से दोनों समय व्याख्यान में और रात्रि भावना में खूब खुले दिल से प्रभावना होती थी; फलौदी वालों ने तो आने जाने का एक तांता सा लगा दिया, हमेशा सौ, दो सौ आदमियों का आना जाना तो बना ही रहता था। जब श्रीमंदिरजी में अट्ठाई महोत्सव शुरू हुआ, तथा वरघोड़ा और स्वामिवात्सल्य होने लगा तो लोगों का उत्साह और भी बढ़ गया । मुनिश्री ने ३५ घरवालों को इस शत पर संवेगी बनाये थे कि जब पूज्यजी कह दें कि सूत्रों में मूर्ति
२६