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पुस्तकों का प्रचार
दो-दो तीन-तीन बजे तक प्रश्न तर्क-वितर्क कर द्रव्यानुयोग-नयनिक्षेपादि अनेक प्रकार का ज्ञान प्राप्त किया था। इसमें कई सज्जन तो आज पर्यन्त आपका बड़ा भारी उपकार समझते हैं पर कई कृतनियों ने तो जैसे सांप को दूध पिलाने से जहर होता है वहावत को चरितार्थ भी कर बतलाया है । __फलौदी में जैन पाठशाला और लाइब्रेरी स्थापित होने से विद्यार्थियों और नव-युवकों में ज्ञान का अच्छा प्रचार हुआ, इस के अतिरिक्त यहाँ पर 'श्रीज्ञानप्रेमपुस्तकालय' नामक संस्था भी स्थापित करवाई जिसमें कई सूत्रों का संग्रह किया गया था, जिस से कि साधु-साध्वियों को अच्छा सुभीता हो गया था । . आपश्री के विर.जने से जैसे फलौदी में ज्ञानप्रचार हुआ, वैसे ही पुस्तकों के प्रकाशित होने से अन्य स्थानों में भी ज्ञानप्रचार कम नहीं हुआ था। 'प्रतिमा-छत्तीसी' जिसकी शुरु में सादड़ी वालों ने २००० प्रतिएं छपवाई थीं, जब वे तत्काल ही खल्लास हो गई तो तीवरी से ७००० प्रतियें पुनः मुद्रित करवाई किंतु वे भी थोड़े ही समय में हाथों हाथ खल्लास हो गई। इस हालत में फलौदी की संस्था की ओर से १०००० प्रतियें और छपवाई गई। इस छोटी सी पुस्तक को जनता ने खूब ही अपनाई और यह इतनी लोकप्रिय बन गई थी कि एक वर्ष भी पूर्ण नहीं हुआ जिसमें तीन श्रावृति की १९००० पुस्तकें छप गई। ___प्रतिमा-छत्तीसी में केवल सूत्रों के नाम, अध्ययन, उद्देश्य वगैरहः स्थान ही बतलाये गये थे; जैसे व्यापारियों के खाता-बही होती है पर साथ में रोकड़ बही की भी आवश्यकता रहती है। अतः आपने 'गयवर-विलास' की रचना की जिसकी तीवरी वालों