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भादर्श-ज्ञान द्वितीय खण्ड
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ने १००० प्रतियें छपवाई थी, पर वह भी बात की बात में खलास हो गई और इसकी मांग बहुत होने से १००० प्रतियें संस्था की ओर से और छपवाई गई थीं। इनके अतिरिक्त १००० 'पैंतीस बोल-संग्रह' छपवाये जिससे कि सर्वसाधारण में शास्त्रीय ज्ञान का प्रचार हो । यों तो पैंतीस बोलों की पुस्तकें पहिले भी कई स्थानों से छपी थीं, किंतु आपने ऐसी प्रतिपादन-शैली से इस किताब को लिखी कि जिससे थोड़ी बुद्धि वाले को भी विशेष ज्ञान हो सके।
१००० स्तवन संग्रह भाग पहिले की पुस्तकें गे मुनिश्री के बनाये हुए स्तवन जो लोगों को बहुत रुचिकर हुये और प्रिय लग. ते थे । ४००० पुस्तकें 'तेरहपन्थीभाई जो दान-दया का गला घोट रहे हैं। उनके हित-शिक्षा के लिये २००० पुस्तकें 'दान-छत्तीसी' तथा २००० 'अनुकम्पा छत्तीसी' की पुस्तकें मुद्रित करवाई। ___ १००० कई भाई केवल ३२ सूत्र मूल मानने का आग्रह करते हुए पूर्वाचार्यों रचित टीका नियुक्ति वगैरह विवरणों का अनादर कर अधोगति की ओर मुँह कर रहे हैं, उनको बचाने के लिये एक प्रश्नमाला स्तवन जो १०८ गाथाओं का बनवाया जिसमें १०० प्रश्न ऐसे पूछे गये हैं कि यदि टीका नियुक्ति वरीरह न मानी जावे तो एक सूत्र से दूसरा सूत्र प्रतिकूल हो जाता है, अतः पूर्वोक्त प्रश्नों का उत्तर ३२ सूत्रों के मूलपाठ से देने का मानो उन लोगों को एक नोटिस ही था।
१००० लिंग-निर्णय-बहुतरी-एक प्रदेशी तीजकुँवरज ढूँढनी की प्रेरणा से मुनिश्री ने न 'लिंग-निर्णय-बहुतरी' नामक पुस्तक बनाई जिसमें जैन साधुओं का वेष कैसा होना चाहिये, और